एक निष्कच्छ संघी अभिनव दीक्षित ने मेरी अतीतजीवियों की आलोचना की एक पद्यात्मक पोस्ट पर औरंगजेब-शिवाजी प्रकरण का हवाला देते हुए कहा कि कोई मुसलमान किसी मुसलमान की बुराई नहीं करता जबकि हिंदू होकर मैं नरपिशाच मोदी की आलोचना करता हूं, और पूछा क्या मैं किसी ओसे मुसलमान को जानता हूं जो इस्लामिक कट्टरपंथ की आलोचना करता हो. उनको मेरा जवाब(इस पर लेख लिखूंगा)ः
Abhinav Dixit मैं न हिंदू हूं न मुसलमान, न ही विद्वान. एक विवेकसम्मत इंसान हूं, एक प्रामाणिक नास्तिक, भगवान और भूत के भय से मुक्त. जो लोग जन्म की जीववैज्ञानिक दुर्घटना(जिसमें उनका कोई योगदान नहीं होता) की अस्मिता से ऊपर नहीं उठ पाते, भूमिहार, ब्राह्मण, यादव...... मुसलमान से इंसान नहीं बन पाते, वे पढ़े-लिखे जाहिल हैं. संघी संस्कार बिना शाखा गये भी हो सकते हैं. 20013 के जनसत्ता के संपादकीय पेज के लेख पढ़ें, डॉ. खुर्शीद अनवर ने वहाबियों और इस्लामी कट्टरपंथियों पर खुला हमला बोलते हुए तमाम लेख लिखे. जैसे बहुत से ब्राह्मण, भुमिहार, य़ादव.... अपनी जातीय अस्मिता से ऊपर उठकर इंसान नहीं बन पाते, वैसे ही बहुत से मुसलमान भी. मेरे बहुत से साथी और कॉमरेड (मुसलमान नामधारी भी), वैसे ही इस्लामी कट्रवाद पर हमला बोलते हैं, जैसे संघी फासीवाद पर. आपके दूसरे सवाल का जवाब क्लास के बाद दूंगा. एक निरंकुश शासक, राजनैतिक लाभ के लिए आवाम पर ज़ुल्म करता है, मोदी की तरह, चाहे वह औरंगजेब हो या शिवाजी, न कि हिंदू या मुसलमान पर. औरंगजेब ने छल से अपने जिन भाइयों का कत्ल किया या जिस पिता को कैद किया सब मुसलमान थे. शिवाजी ने जिस चंद्रराव मोरे का छल-कपट से हत्या करके सत्ता हासिल किया वह एक हिंदू थे मुसलमान नहीं. आप छल-कपट और कायरतापूर्ण धोखे से अफज़ल खां की हत्या के लिए शिवाजी को नायक मानते हैं, यदि भूमिकायें बदल गयी होतीं तो क्या आप अफ़ज़ल को भी नायक मानते? इतिहास की वस्तुनिष्ठ समझ के लिए पूर्वाग्रहों-दुराग्रहों से् ऊपर उठने की आवश्यकता होती है, वरना बने रहिए कूप-मंडूक.
दीक्षिक जी का कमेंटः
ish ji sahi bat to ye ha ki ma nishkachchh ka arth nahi samajh saka aur ma sanghi nahi hu par rashtrvaadi jarur hu qki agar rashtr nahi to hamara hi kya astitv rah jayega aap us baat ka matlab kis tarah nikaalte ha ye aap par nirbhar karta ha aur mujhe apne rashtrvaadi hone par garv ha ma hindu dharm ke dhongiyon ke bhi khilaaf hu par har dharm me achchhi baaten bhi hoti ha jinka ma hindu hone ke naate samman karta hu aur paalan karne ki koshish karta hu kattarvaad kisi bhi cheez ka dharm ka ya soch ka bura hi hota ha par rashtrvaadi hone me ma garv mahsus karta h
वह कविता तो कट्टरवाद पर ही आक्रमण थी. मुझे किसी के धीर्मिक होेने से कोई आपत्ति नहीं है. मेरी पत्नी रोज 1 घंटे घंटी बजाती हैं, मुझे कोई दिक्कत नहीं है, मेरी मुखालफत धर्म को सियासी हथियार बनाकर, फिरकापरस्ती की नफरत फैलाकर, लोगों की धार्मिक भावनाओं का लाभ उठाकर चुनावी फायदे के लिए मुल्क की सामासिक संस्कृति तोड़ने वालों और लफ्फाजी से मुल्क की संपदा कारपोरेट के हवाले करने वालों से है. मेरी मुखालफत राष्ट्रवाद से नहीं अंधराष्ट्रवाद और हिंदू राष्ट्रवाद से है. राष्ट्रवाद पूंजीवादी अर्थतंत्र की राजनैतिक व्यवस्था, आधुनिक राष्ट्र राज्य की विचारधारा है जिसका धर्म से कुछ नहीं लेना देना नहीं है. हम आइंस्टाइन से सहमत हैं कि धर्म की उत्पत्ति भय से हुई. धर्म की हिफाजत के लिए एक पुजारी वर्ग पैदा हुआ जिसने उसे कर्मकांडों में जकड कर संस्थागत कर दिया. निजी संपत्ति के आगाज के चलते शोषक-शोषित के वर्ग-विभाजन से सभ्यता की शुरुआत के साथ धर्म शासक वर्गों के हाथ में यथास्थिति बरकरार रखने का कारगर औजार बन गया जिसकी निरंतरता आज तक बनवी हुई है.
Abhinav Dixit मैं न हिंदू हूं न मुसलमान, न ही विद्वान. एक विवेकसम्मत इंसान हूं, एक प्रामाणिक नास्तिक, भगवान और भूत के भय से मुक्त. जो लोग जन्म की जीववैज्ञानिक दुर्घटना(जिसमें उनका कोई योगदान नहीं होता) की अस्मिता से ऊपर नहीं उठ पाते, भूमिहार, ब्राह्मण, यादव...... मुसलमान से इंसान नहीं बन पाते, वे पढ़े-लिखे जाहिल हैं. संघी संस्कार बिना शाखा गये भी हो सकते हैं. 20013 के जनसत्ता के संपादकीय पेज के लेख पढ़ें, डॉ. खुर्शीद अनवर ने वहाबियों और इस्लामी कट्टरपंथियों पर खुला हमला बोलते हुए तमाम लेख लिखे. जैसे बहुत से ब्राह्मण, भुमिहार, य़ादव.... अपनी जातीय अस्मिता से ऊपर उठकर इंसान नहीं बन पाते, वैसे ही बहुत से मुसलमान भी. मेरे बहुत से साथी और कॉमरेड (मुसलमान नामधारी भी), वैसे ही इस्लामी कट्रवाद पर हमला बोलते हैं, जैसे संघी फासीवाद पर. आपके दूसरे सवाल का जवाब क्लास के बाद दूंगा. एक निरंकुश शासक, राजनैतिक लाभ के लिए आवाम पर ज़ुल्म करता है, मोदी की तरह, चाहे वह औरंगजेब हो या शिवाजी, न कि हिंदू या मुसलमान पर. औरंगजेब ने छल से अपने जिन भाइयों का कत्ल किया या जिस पिता को कैद किया सब मुसलमान थे. शिवाजी ने जिस चंद्रराव मोरे का छल-कपट से हत्या करके सत्ता हासिल किया वह एक हिंदू थे मुसलमान नहीं. आप छल-कपट और कायरतापूर्ण धोखे से अफज़ल खां की हत्या के लिए शिवाजी को नायक मानते हैं, यदि भूमिकायें बदल गयी होतीं तो क्या आप अफ़ज़ल को भी नायक मानते? इतिहास की वस्तुनिष्ठ समझ के लिए पूर्वाग्रहों-दुराग्रहों से् ऊपर उठने की आवश्यकता होती है, वरना बने रहिए कूप-मंडूक.
दीक्षिक जी का कमेंटः
ish ji sahi bat to ye ha ki ma nishkachchh ka arth nahi samajh saka aur ma sanghi nahi hu par rashtrvaadi jarur hu qki agar rashtr nahi to hamara hi kya astitv rah jayega aap us baat ka matlab kis tarah nikaalte ha ye aap par nirbhar karta ha aur mujhe apne rashtrvaadi hone par garv ha ma hindu dharm ke dhongiyon ke bhi khilaaf hu par har dharm me achchhi baaten bhi hoti ha jinka ma hindu hone ke naate samman karta hu aur paalan karne ki koshish karta hu kattarvaad kisi bhi cheez ka dharm ka ya soch ka bura hi hota ha par rashtrvaadi hone me ma garv mahsus karta h
वह कविता तो कट्टरवाद पर ही आक्रमण थी. मुझे किसी के धीर्मिक होेने से कोई आपत्ति नहीं है. मेरी पत्नी रोज 1 घंटे घंटी बजाती हैं, मुझे कोई दिक्कत नहीं है, मेरी मुखालफत धर्म को सियासी हथियार बनाकर, फिरकापरस्ती की नफरत फैलाकर, लोगों की धार्मिक भावनाओं का लाभ उठाकर चुनावी फायदे के लिए मुल्क की सामासिक संस्कृति तोड़ने वालों और लफ्फाजी से मुल्क की संपदा कारपोरेट के हवाले करने वालों से है. मेरी मुखालफत राष्ट्रवाद से नहीं अंधराष्ट्रवाद और हिंदू राष्ट्रवाद से है. राष्ट्रवाद पूंजीवादी अर्थतंत्र की राजनैतिक व्यवस्था, आधुनिक राष्ट्र राज्य की विचारधारा है जिसका धर्म से कुछ नहीं लेना देना नहीं है. हम आइंस्टाइन से सहमत हैं कि धर्म की उत्पत्ति भय से हुई. धर्म की हिफाजत के लिए एक पुजारी वर्ग पैदा हुआ जिसने उसे कर्मकांडों में जकड कर संस्थागत कर दिया. निजी संपत्ति के आगाज के चलते शोषक-शोषित के वर्ग-विभाजन से सभ्यता की शुरुआत के साथ धर्म शासक वर्गों के हाथ में यथास्थिति बरकरार रखने का कारगर औजार बन गया जिसकी निरंतरता आज तक बनवी हुई है.
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