Friday, March 28, 2014

क्षणिकाएं 18 (391-400)

391
हर हर मोदी का यह उंमादी उत्पात
नहीं कर पायेंगे भोले शंकर भी बर्दाश्त
हुई है कलंकित काशी पहले भी मानवता के हत्यारों से
अल्ला-हो-अकबर और हर हर महादेव के नारों से
थैलीशाह के इशारे पर फैलाते हैं ये अफवाहें औ उन्माद
और बताते है इसमें अल्लाह और महादेव शंकर का हाथ
करवाते लूट-पाट और गरीब से गरीब का रक्तपात
मार-काट, आगजनी, बलात्कार और लूटपाट
काशी नगरी में फैला देते थे  नफरत की आग
अलापते हुए अल्लाह और महादेव का राग
बहुत छली गयी है काशी अब और नहीं छलायेगी
मज़हबी तंद्रा से काशीवासियों को जगायेगी
बनायेगी उनको हिंदू-मुसलमान से इंसान
हर हर मोदी का मिटा देगी नाम-ओ- निशान
काशी की खाशियत की है एक और बात
आते हैं यहां सभी पापी धोने अपना पाप
धो नहीं पाती है गंगा जिन पापियों के पाप
करवाती है नगरी यह उनसे पश्चाताप
पहुंचा देती है वरना उनको मनिकर्णिका घाट
(ईमिः16.03.2014)
392
मोदी लहर है एक अफवाह, हिटलर के कुत्तों की वाह वाह
उठेगी बनारस से जो चिंगारी, खाक करदेगी नगपुरिया मक्कारी
सिखलायेगी सबक इनको काशी, बनेगी जो मोदियापे की सत्यानाशी
नमो नमो स्वाहा, संघी जहालत स्वाहा, अंबानी की दलाली स्वाहा
टाटा की कुत्तागीरी स्वाहा, काली टोपी स्वाहहा
खाकी निक्कर स्वाहा, नमो नमो स्वाहा
393
शौक है अपना मोदिआए ज़ाहिलों को रुलाने का, खॉब है हमारा एक सुंदर दुनिया बनाने का
हरामखोरी और दुख-दर्द को दूर भगाने का , समता और जनवाद के ज़ज़्बात को जगाने का
किया फैसला हमने कंटीले रास्तों पर चलने का, पग-पग पर मौजूद ठोकरों को धता बताने का
नभ में चमक रही थी चपला  फिर भी नहीं तनिक मैं विचला, ओलों की बूंदाबांदी में  उदधि थहाने था जब निकला
छेड़ा है फासीवादी मंसूबों के खिलाफ अभियान, चलता रहेगा जब तक जान में है जान
मिटा देंगे मोदियापे का नाम-ओ-निशान, लायेंगे ही हम दुनिया में एक नया बिहान
जागेगा इस मुल्क का छात्र-ओ-नवजवान, दफ्न हो जायेगा तब मोदियापे का शैतान
मुक्त होगा ज़ुल्म से मजदूर-ओ-किसान, मिट जायेगा ज़ुल्म-ओ-सितम का निशान
बनेगा तब इंसानियत का आलीशान मकान, न कोई रंक होगा न होगा कोई राजा
ताज़-ओ-तख्त का तब बज जायेगा बाजा, होगा निज नियंत्रण अपनी सर्जनात्मकता पर
मालिकाना हक़ अपने श्रम की उत्पादकता पर, हक़ीकी इरादे हैं ये नहीं कोई फसाना
आना ही है अब मानव-मुक्ति का नया जमाना.
394
और अंत में
लूट-खसोट स्वाहा, नमो नमो स्वाहा
फासीवाद स्वाहा, नमो नमो स्वाहा
हुटलर की विरासत स्वाहा, नमो नमो स्वाहा
अंबानी की गुलामी स्वाहा, नमो नमो स्वाहा
अदानी की दरवानी स्वाहा, नमो नमो स्वाहा
टाटा की रहनुमाई स्वाहा, नमो नमो स्वाहा
मोदियापे की ज़हालत स्वाहा, नमो नमो स्वाहा
(ईमिः21.03.2014)
395
फेंकू-पप्पू हैं चोर चोर मौसेरे भाई, इनकी है ये आपसी लड़ाई
होती जब यसईज़ेड की बात, हो जाते दोनों साथ
विदेशी निवेश के दीवाने दोनों, वालमार्टी मस्ताने दोनों
दोनों जब अमरीका जाते, विश्व-बैंक को शीश नवाते
गुर्राता जब बराक ओबामा, गीला हो जाता उनका पाजामा
किया केजरी ने जब अंबानी पर केस, मिलकर आपस में फैलाया भदेश
खुल रहा है धीरे-धीरे भेद नूरा-कुश्ती का, दोनों की कारपोरेटपरस्ती का
खुल जायेगा जिस दिन पूरा भेद, जनता देगी दोनों को खेद
शुरू करेगी जनता तब एक नया खेल, फेंकू-पप्पू की बना देगी रेल
अदानी और अंबानी जायेंगे जेल. कारपोरेटी लूट का खत्म करेगी खेल
होगा एक नये बिहान का आगाज़, आयेगा दुनियां में सचमुच का सुराज
होगी दुनियां तब आज़ाद, जब आएगा किसान-मज़दूर का राज
( ईमिः22.03.2014)
396
जब से सुरू हुआ भेद इंसान और इंसान में
कहते हैं आई है सभ्यता तभी से जहान में
करती है सभ्यता इंसान में दोगलेपन का संचार
भरतीहै मन में उसके कई धूर्त विचार
है दिखना चहता वह जो होता नहीं
करना चाहता है जो कहता नहीं
कहता है जो वह करता नहीं
(ईमिः26.03.2014)
397
बदल दो इंतजार में तार-तार हुए पर्दे को
फिर भरो सुर्खी  जर्द चेहरे पर
और बना आंखों में छलकते तक़लीफ के समंदर को संबल
भरो अंतरिक्ष की  नई उड़ान
बदल दो इंतजार के समीकरण के पद-पात्र
सच प्रेम है एक निहायत निजी मामला
घटती है मगर जैसै-जैसे पारस्परिकता और समानुभूति
और बढ़ता है टकराव अहंकारों का
पार कर निजता की सीमा की मर्यादा
प्यार बन जाता है  एक सामाजिक मसला
दर-असल निजता सामाजिकता की ही एक प्रमेय है
(ईमिः28.03.2014)
398
प्यार जब समझौता बन जाता है
परस्परानुभूति के रथ से
तब्दील हो जाता है बोझ में
घसीटते हैं जिसे दो प्राणी
बैल गाड़ी के बैलों की तरह
बोझ तो फिर भी बोझ होता है
(ईमिः28.03.2014)
399
बोझ तो फिर बोझ ही होता है
उसे उतार फेंकना ही बेहतर है जितनी जल्दी हो सके
कंधों को भी आखिर मुक्ति की चाहत तो होती ही होगी
चाहे प्यार का ही क्यों न हो
बोझ तो फिर बोझ ही होता है
दर-असल रह नहीं जाता प्यार
लगता है जब भी वह बोझ
(ईमिः28.03.2014)
400
जनकवि फाश को याद करते हुएः 
सपने हर किसी को नहीं आते, सच कहते हो कामरेड पाश
सपनों के लिए मज़बूत कलेजा चाहिए, क्रांति का जज़्बा चाहिए
नहीं आते सपने जड़ समाज को, और कठमुल्लावीद को
लाशों के शहर में नहीं आते सपने, सपने ज़िंदा क़ौमों की निशानी हैं
सपने उन्हें आते हैं, समझते हैं जो हैवानियत लूट-खसोट को
रोता है जिनका दिल, इंसानियत की सिसकियों के साथ
वायदा करते हैं, कामरेड पाश
नहीं होने देंगे सबसे खतरनाक बात, नहीं मरने देंगे सपनों को
(ईमिः28.03.2014)




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