Sunday, March 30, 2014

capitalism and corruption

The politicians are just the agents of the ruling classes -- the global, corporate capitalism -- and duality & corruption are not the matters of policy error but immanently innate attribute of the capitalism based on the the Adam Smithian principle of profit maximization that appropriates the power with the slogans of equality fraternity and liberty but its very existence depends   upon the opposite principles. It promises the heaven and plunders the earth.

Capitalism or any epochal ruling classes thrive on creating an unknown, abstract fear of innovation and an unknown newness and selling abstract illusions. The earth has plenty for everyone's needs but not enough for capitalist greed of accumulation. That is why corrupt officials and even professors for that matter (When I zeroed in on my job priority, as we all are condemned to do alienated labor as we get divorced from the means of labor, I thought this job does not have potentialities of corruption but I was wrong) are unfortunate miserable duffers as they are ignorant of the basic principles of the dynamics of capitalism, that in capitalism, only capitalist can accumulate others, howsoever highly paid executive or corrupt politician/official one may be, can be only under the illusion of accumulation. the economic historian Andre Gunder Frank has coined a term for this category of people the "lumpen bourgeois" class.

Thanks Manoj! I really wonder, what knowledge we impart that "cream" of educated sections do not no these basic principles that -- 1. money is means not the end; 2. In capitalism, only capitalist can accumulate, a wage earner howsoever highly paid and/or corrupt executive he/she may be, cant accumulate, can only harbor the illusion of accumulation. Look at the number of the "creams" -- IAS/IPS facing corruption charges who sell theeir conscience for free. 

We live in a country

We live in a country where rape is acknowledged as the symbol of manliness and rapist a hero &
The MCPs take upon themselves to be country's moral guards.
We live in a country where all the greatness have happened in the past &
That is a conspiracy against the future

मोदी विमर्श 17

मोदी का विकास

मोदी शासन में गुजरात में अंबानियों और अदानियों का विकास हुआ है, गैर-बरारगी, भुखमरी, विस्थापन, निरंकुशता के आतंक, किसानों की आत्म-हत्या, शराब की काला-बाजारी (गुजरात में 24x7 शराब उपलब्ध होती है, शराबमाफिया-पुलिस-नौकरशाही-नेता का ऐसा नेक्सस बन गया है कि सरकार के लिए शराबबंदी बंद करना मुश्किल होगा), पुलिस का अपराधीकरण (और कहीं तत्कालीन मुखिया समेत इतने पुलिस अधिकारी जेल में नहीं हैं जब कि बहुत से अपराधी पुलिसकर्मी अब भी खुल्ला घूम रहे है), भ्रष्टाचार आदि का काफी विकास हुआ है.

Friday, March 28, 2014

सपनों की पेटेंटिंग


सपनों की पेटेंटिंग नहीं होती.
हर किसी को आ सकते हैं 
भोग-विलास भूत-प्रेत के सपने
नहीं फर्क पड़ता 
उन सपनों के मरने या जीने से
नहीं ये सपने सरोकार जनकवि पाश के
दुनियां बदलने के सपने हैं 
उनकी चिंता के विषय 
सपने मानव मुक्ति के 
शोषण-दमन से मुक्ति के सपने
सपने एक नई सुंदर दुनियां के
मुक्त होगी जिसमें सामूहिक सर्जन शक्ति
न होगा कोई भगवान न होगी कोई भक्ति
ऐसे सपने हर किसी को नहीं आते
उन्हीं को आते हैं होते हैं जो निष्ठावान
भूत-प्रेत के सपने तो बहुतों को आते हैं
कुछ तो दिन में ही मार्क्स-मार्क्स अभुआते हैं
देखेंगे ही इंक़िलाबी सपने सभी एक-न-एक दिन
मुक्त हो जायेंगे जब भूत-प्रेत की छाया से
ऐश-ओ-आराम की मोह-माया से 
मिलकर गढ़ेंगे सब तब एक नया बिहान
इंसान होंगे सब एकसमान
(ईमिः29.03.2014)

क्षणिकाएं 18 (391-400)

391
हर हर मोदी का यह उंमादी उत्पात
नहीं कर पायेंगे भोले शंकर भी बर्दाश्त
हुई है कलंकित काशी पहले भी मानवता के हत्यारों से
अल्ला-हो-अकबर और हर हर महादेव के नारों से
थैलीशाह के इशारे पर फैलाते हैं ये अफवाहें औ उन्माद
और बताते है इसमें अल्लाह और महादेव शंकर का हाथ
करवाते लूट-पाट और गरीब से गरीब का रक्तपात
मार-काट, आगजनी, बलात्कार और लूटपाट
काशी नगरी में फैला देते थे  नफरत की आग
अलापते हुए अल्लाह और महादेव का राग
बहुत छली गयी है काशी अब और नहीं छलायेगी
मज़हबी तंद्रा से काशीवासियों को जगायेगी
बनायेगी उनको हिंदू-मुसलमान से इंसान
हर हर मोदी का मिटा देगी नाम-ओ- निशान
काशी की खाशियत की है एक और बात
आते हैं यहां सभी पापी धोने अपना पाप
धो नहीं पाती है गंगा जिन पापियों के पाप
करवाती है नगरी यह उनसे पश्चाताप
पहुंचा देती है वरना उनको मनिकर्णिका घाट
(ईमिः16.03.2014)
392
मोदी लहर है एक अफवाह, हिटलर के कुत्तों की वाह वाह
उठेगी बनारस से जो चिंगारी, खाक करदेगी नगपुरिया मक्कारी
सिखलायेगी सबक इनको काशी, बनेगी जो मोदियापे की सत्यानाशी
नमो नमो स्वाहा, संघी जहालत स्वाहा, अंबानी की दलाली स्वाहा
टाटा की कुत्तागीरी स्वाहा, काली टोपी स्वाहहा
खाकी निक्कर स्वाहा, नमो नमो स्वाहा
393
शौक है अपना मोदिआए ज़ाहिलों को रुलाने का, खॉब है हमारा एक सुंदर दुनिया बनाने का
हरामखोरी और दुख-दर्द को दूर भगाने का , समता और जनवाद के ज़ज़्बात को जगाने का
किया फैसला हमने कंटीले रास्तों पर चलने का, पग-पग पर मौजूद ठोकरों को धता बताने का
नभ में चमक रही थी चपला  फिर भी नहीं तनिक मैं विचला, ओलों की बूंदाबांदी में  उदधि थहाने था जब निकला
छेड़ा है फासीवादी मंसूबों के खिलाफ अभियान, चलता रहेगा जब तक जान में है जान
मिटा देंगे मोदियापे का नाम-ओ-निशान, लायेंगे ही हम दुनिया में एक नया बिहान
जागेगा इस मुल्क का छात्र-ओ-नवजवान, दफ्न हो जायेगा तब मोदियापे का शैतान
मुक्त होगा ज़ुल्म से मजदूर-ओ-किसान, मिट जायेगा ज़ुल्म-ओ-सितम का निशान
बनेगा तब इंसानियत का आलीशान मकान, न कोई रंक होगा न होगा कोई राजा
ताज़-ओ-तख्त का तब बज जायेगा बाजा, होगा निज नियंत्रण अपनी सर्जनात्मकता पर
मालिकाना हक़ अपने श्रम की उत्पादकता पर, हक़ीकी इरादे हैं ये नहीं कोई फसाना
आना ही है अब मानव-मुक्ति का नया जमाना.
394
और अंत में
लूट-खसोट स्वाहा, नमो नमो स्वाहा
फासीवाद स्वाहा, नमो नमो स्वाहा
हुटलर की विरासत स्वाहा, नमो नमो स्वाहा
अंबानी की गुलामी स्वाहा, नमो नमो स्वाहा
अदानी की दरवानी स्वाहा, नमो नमो स्वाहा
टाटा की रहनुमाई स्वाहा, नमो नमो स्वाहा
मोदियापे की ज़हालत स्वाहा, नमो नमो स्वाहा
(ईमिः21.03.2014)
395
फेंकू-पप्पू हैं चोर चोर मौसेरे भाई, इनकी है ये आपसी लड़ाई
होती जब यसईज़ेड की बात, हो जाते दोनों साथ
विदेशी निवेश के दीवाने दोनों, वालमार्टी मस्ताने दोनों
दोनों जब अमरीका जाते, विश्व-बैंक को शीश नवाते
गुर्राता जब बराक ओबामा, गीला हो जाता उनका पाजामा
किया केजरी ने जब अंबानी पर केस, मिलकर आपस में फैलाया भदेश
खुल रहा है धीरे-धीरे भेद नूरा-कुश्ती का, दोनों की कारपोरेटपरस्ती का
खुल जायेगा जिस दिन पूरा भेद, जनता देगी दोनों को खेद
शुरू करेगी जनता तब एक नया खेल, फेंकू-पप्पू की बना देगी रेल
अदानी और अंबानी जायेंगे जेल. कारपोरेटी लूट का खत्म करेगी खेल
होगा एक नये बिहान का आगाज़, आयेगा दुनियां में सचमुच का सुराज
होगी दुनियां तब आज़ाद, जब आएगा किसान-मज़दूर का राज
( ईमिः22.03.2014)
396
जब से सुरू हुआ भेद इंसान और इंसान में
कहते हैं आई है सभ्यता तभी से जहान में
करती है सभ्यता इंसान में दोगलेपन का संचार
भरतीहै मन में उसके कई धूर्त विचार
है दिखना चहता वह जो होता नहीं
करना चाहता है जो कहता नहीं
कहता है जो वह करता नहीं
(ईमिः26.03.2014)
397
बदल दो इंतजार में तार-तार हुए पर्दे को
फिर भरो सुर्खी  जर्द चेहरे पर
और बना आंखों में छलकते तक़लीफ के समंदर को संबल
भरो अंतरिक्ष की  नई उड़ान
बदल दो इंतजार के समीकरण के पद-पात्र
सच प्रेम है एक निहायत निजी मामला
घटती है मगर जैसै-जैसे पारस्परिकता और समानुभूति
और बढ़ता है टकराव अहंकारों का
पार कर निजता की सीमा की मर्यादा
प्यार बन जाता है  एक सामाजिक मसला
दर-असल निजता सामाजिकता की ही एक प्रमेय है
(ईमिः28.03.2014)
398
प्यार जब समझौता बन जाता है
परस्परानुभूति के रथ से
तब्दील हो जाता है बोझ में
घसीटते हैं जिसे दो प्राणी
बैल गाड़ी के बैलों की तरह
बोझ तो फिर भी बोझ होता है
(ईमिः28.03.2014)
399
बोझ तो फिर बोझ ही होता है
उसे उतार फेंकना ही बेहतर है जितनी जल्दी हो सके
कंधों को भी आखिर मुक्ति की चाहत तो होती ही होगी
चाहे प्यार का ही क्यों न हो
बोझ तो फिर बोझ ही होता है
दर-असल रह नहीं जाता प्यार
लगता है जब भी वह बोझ
(ईमिः28.03.2014)
400
जनकवि फाश को याद करते हुएः 
सपने हर किसी को नहीं आते, सच कहते हो कामरेड पाश
सपनों के लिए मज़बूत कलेजा चाहिए, क्रांति का जज़्बा चाहिए
नहीं आते सपने जड़ समाज को, और कठमुल्लावीद को
लाशों के शहर में नहीं आते सपने, सपने ज़िंदा क़ौमों की निशानी हैं
सपने उन्हें आते हैं, समझते हैं जो हैवानियत लूट-खसोट को
रोता है जिनका दिल, इंसानियत की सिसकियों के साथ
वायदा करते हैं, कामरेड पाश
नहीं होने देंगे सबसे खतरनाक बात, नहीं मरने देंगे सपनों को
(ईमिः28.03.2014)




जनकवि पाश को याद करते हुएः

जनकवि पाश को याद करते हुएः

सपने हर किसी को नहीं आते
सच कहते हो कामरेड पाश
सपनों के लिए मज़बूत कलेजा चाहिए
क्रांति का जज़्बा चाहिए
नहीं आते सपने जड़ समाज को 
और कठमुल्लावीद को
लाशों के शहर में नहीं आते सपने
सपने ज़िंदा क़ौमों की निशानी हैं
सपने उन्हें आते हैं
समझते हैं जो हैवानियत लूट-खसोट की
रोता है जिनका दिल
इंसानियत की सिसकियों के साथ
वायदा करते हैं, कामरेड पाश
नहीं होने देंगे सबसे खतरनाक बात
नहीं मरने देंगे सपनों को
(ईमिः28.03.2014)

बोझ तो फिर बोझ ही होता है

बोझ तो फिर बोझ ही होता है
उसे उतार फेंकना ही बेहतर है जितनी जल्दी हो सके
कंधों को भी आखिर मुक्ति की चाहत तो होती ही होगी
चाहे प्यार का ही क्यों न हो
बोझ तो फिर बोझ ही होता है
दर-असल रह नहीं जाता प्यार 
लगता है जब भी वह बोझ
(20.03.2014)

Thursday, March 27, 2014

प्यार का बोझ

प्यार जब समझौता बन जाता है
परस्परानुभूति के रथ से
तब्दील हो जाता है बोझ में
घसीटते हैं जिसे दो प्राणी
बैल गाड़ी के बैलों की तरह
बोझ तो फिर भी बोझ होता है
(ईमिः28.03.2014)

निजता सामाजिकता की ही एक प्रमेय



बदल दो इंतजार में तार-तार हुए पर्दे को
फिर भरो सुर्खी  जर्द चेहरे पर
और बना आंखों में छलकते तक़लीफ के समंदर को संबल
भरो अंतरिक्ष की  नई उड़ान
बदल दो इंतजार के समीकरण के पद-पात्र
सच प्रेम है एक निहायत निजी मामला
घटती है मगर जैसै-जैसे पारस्परिकता और समानुभूति
और बढ़ता है टकराव अहंकारों का
पार कर निजता की सीमा की मर्यादा
प्यार बन जाता है  एक सामाजिक मसला
दर-असल निजता सामाजिकता की ही एक प्रमेय है
(ईमिः28.03.2014)

सभ्यता

जब से सुरू हुआ भेद इंसान और इंसान में
कहते हैं आई है सभ्यता तभी से जहान में
करती है सभ्यता इंसान में दोगलेपन का संचार
भरतीहै मन में उसके कई धूर्त विचार
है दिखना चहता वह जो होता नहीं
करना चाहता है जो कहता नहीं
कहता है जो वह करता नहीं
(ईमिः26.03.2014)

Monday, March 24, 2014

मोदी विमर्श 16

मामला दंगा रोकने की नहीं करवाने की है. मोदी दंगे न करवाता तो दुबारा चुनाव न जीत पाता और आज हर हर मोदी की जहालत की उत्पात नहीं मच हाती, यह जाहिल, संघी प्रचारक निक्कर पहने कबड्ड़ी और खो खेल रहा होता. यदि अटल बिहारी राजधर्म का शगूफा न छोड़कर अमल करता तो यह नरपिशाच प्रधानमंत्री का सपना देखने की बजाय बाबू बजरंगी और माया कोडनानी के साथ जेल में मशक्कत कर रहा होता. यदि न्यायपालिका और पुलिस बिकी हुए न होती तो मानवता का यह दुशमन सजा-ए-मौत का हक़दार होता.

Anjali Sharma संघियों के पास दिमाग इस्तेमाल करने की क्षमता होती तो क्या कहने? अंजली जी ज़रा सोचिये गोधरा में जिन गरीबों को मोदी ने जलाकर मरवाया उनमे यदि आपकी मा भी होती तो कैसा  लगता? जिस औरत का गर्भ फाडकर भ्रूण को आग के हवाले किया नरपिशाच मोदी के बजरंगी बीरों ने वह आप या आपकी मा-बहन होती तो कैसा लगता? जिन मासूमों को मारा और बेघर किया उनमें आप का भाई बाप होता तो कैसा लागता?. जिन महिलाओं के साथ सामूहिक-सार्वजनिक बलात्कार-ह्त्या  किया मोदी के बजरंगी पिशाचों ने उनमें से आप होती तो कैसा लगता? मजा आता? अगर आप बिलकिस बानो की जगह होती और दसियों आतताइयों की टांगों के नीचे के गुजरने के बाद बच  जाती तो बाकी ज़िंदगी उन क्षणों की सुखद यादों के साथ कितना मज़ा आता? दिमाग का इस्तेमाल करें अंजलि जी, किसी नरभक्षी नर्पिशः की वन्दना के पहले. मुझे तो आप के औरत होने पर संदेह है क्योंकि कोइ औरत घोर नारी विरोधी/मनुवादी संघ की हिमायती कैसे हो सकती है?

The function of state is to protect the person and property of the citizens, even if we agree for a moment that Modi did not conduct the pogroms and mass-gang rapes, the bajrangi lumpens did on their own, and Modi as a CM was helpless to stop the in human monstrous aacts by VHP and Bajarangis and fake encounters by Banzaras the he is incompetent and inefficient administrator must be tried for dereliction of duties. suppose he becomes PM and such inhuman crimes against humanity happen at national level and that paid agent, the fascist scoundrel takes the recourse that he could not stop them in helplessness? All the devotees of Modi are duffers as they cant recite a single reason for making a fascist duffer as their God.

मोदी के भक्त यह नहीं बताते कि वे कैसे भारत का विकास करेंगे गुजरात जैसा जिसमें मुल्क का अम्बानियों-अदानियों को गिरवी रख देंगे जिनके वे जरखरीद गुलाम हैं जिन्हें अपने बाप की जागीर समझ किसानों की जमीनी दहेज़ दे दी है. ज्यादातर मोदी-बहकत पढ़े-लिखे जाहिल हैं क्योंकि वे इस ह्त्या-बलात्कार के आयोजक जाहिल का साम्प्रादायिक नाफरल फैलाने के अलावा  एक गुण नहीं बताते जिससे वे इनका भगवान् बन गया. जो दिमाग का इस्तेमाल नहीं करते वे जाहिल हैं.

मार्क्स-लेनिन इंसानियत के सेवक रहे हैं, नास्तिक जो जप-तप में यकीन नहीं करते. मैं पढ़े-लिखे मोदियाए लोगों को इस लिए जाहिल कहता हूँ कि वे दिमाग का इस्तेमाल नहीं करते. आज तक नफ़रत की फसल काटने की महारत और अडानी-अम्बानी की जर्खरीदी के सिवा इस इतिहास बोध से वंचित नरपिशाच का एक भी गुण नहीं बता पाते जिससे वह इनका अराध्य हो गया.

लल्ला पुराण 140(अध्यात्म)

इस पर तो लंबे लेख द्वारा विश्लेषण की आवश्यकता है और क्लास की तैयारी करनी है. फिर कभी. आध्यात्म और चिंतन परस्पर विरोधी हैं.  आध्यात्म यथार्थ की ही समस्याओं का अमूर्तीकरण है जिससे स्वयंसिद्ध मान लिया जा सकता है क्योंकि मानव इंद्रियों के माध्यम से सत्यापन या प्रमाण से परे हैं. अध्यात्म महज एक अवधारणा है जो बाबागीरी जैसे फरेब की संभावनाओं को आधार प्रदान करता है.

मैं इस पर एक लेख लिखूंगा फुर्सत मिली तो. आध्यात्मिक जगत की अवधारणा वास्तविक जगत की विषमताओं से ध्यान हटाना और अबूझ, अपरिभाषित अमूर्त अवधारणाओं में उलझाना शासकवर्गों का एक फरेब है. आध्यातम के झंडाबरदार वास्तविक समस्याओं को गौड़ बताकर मानवता के साथ गद्दारी करते हैं. अध्यात्म के सारे पुरोधा अज्ञान फैलाने वाले धूर्त हैं. आध्यात्मिक धूर्तता के चलते ही शोेषण-दमन निर्बाध चलता है इस मुल्क में. किसी आध्यात्मिक गुऱी का नाम बताइए जो फरेबा और मक्कार न हो

शंकराचार्य भौतिकवादी बौद्ध और लोकायत दर्शनों के प्रभाव को खत्म करने के प्रयास में दुनियादारी की ठोस समस्ययाओं की समाधान ढूढ़ने में असमर्थ होे अद्वैत का रहस्यवाद रचा जिसे रामानुज ने परमार्दित किया और राम मोहन रॉय और विवेककानंद ने पुनर्परिभाषित किया. स्वामी करपात्री, त्रिडंडी महराज मेरे ननिहाल के गांव के मंदिर के निर्माता और कुलगुरू थे. ये सब सत्य की तलाश में भटके हुए लोग थे जो किसी अमूर्त काल्पनिक ब्रह्म का अवधारणा में अटक गये, इनके आधुनिक, वुकृत संसकरण संसकरण बाबा रामदेव और बापू आसाराम जैसे जनद्रोही हैं.

फिलहाल मित्र शंकराचार्य  का और कुछ पढ़ने का वक्त नहीं है  जितना पढ़ना है, दुनिया के लिए सार्थक और प्रासंगिक उसके ही लिए वक़्त कम है, आध्यात्म की अमूर्त और अबोध्यगम, हवाई आख्यानों के लिए कहांँ वक़्त मिलेगा. कोई ब्रह्म है कि नहीं कोी उह लोक है कि नहीं, मेरे सरोकार का विषय नहीं है. मेरे लिए जो है वही सत्य है जो आध्यातमिक सत्य है जिसे प्रमाणित नहीं किया जा सकता वह माया और फरेब है जो हक़ीकत के दुख-दर्द से लोगों का ध्यान हटाकर किसी सुखद उहलोक के हवाई मायाजाल में उलझा देता है. इसीलिए मैंने कहा आध्यात्म चिंतन का विरोधी है क्योंकि आस्था प्रश्न से परे है. मछ और हठ बूर्वाग्रहों और अंधविश्वासों को बल प्रदान करते हैं. मानवता की मुक्ति पूजा-अनुष्ठान से नहीं, शोषण-दमन और वर्चस्व के निज़ाम के खात्मे से होगी.    

Sunday, March 23, 2014

Neo-Machiavellianism 1

The founder of to be founded "real" BJP, Jaswant Singh, after denial of ticket to him, suddenly realized  that the BJP has becomme fake. Both the BJPs -- the real and fake-- are fake in terms of Janta of its name. If look at the dictators of the history. I am planning a write up on Neo-Machiavellian princes (planning is no guaranty of happening). The armed conquest of Renaissances absolutism  has been replaced by electoral conquest of our neo-liberal corporate absolutism. First target of a dictator-in-making is  the internal claimants and supposedly the kingmakers, those who have closely watched and/or helped him growing from humble background to princedom and know it well that he is just like one of them.. They are the biggest dangers. Eliminate them through power ans populism acquired by whatever means, as for Machiavelli, end justifies the means, Indira Gandhi did that. Her populism was relatively progressive, at least in theory, promise them the sky and only foolish princes will keep the words. Just that keep them hoping on the principles of kill quickly, reward gradually. GARIBI HATAO rhetoric worked like a magic.  The Prince has to be sen like moving towards fulfilling the promises. Garibi hatao rhetoric was combined with actions like abolition of previ-purse and the nationalization of the banks. Many socialists and communists joined her bandwagon "to wreck the system from within' and got wrecked themselves. The first target before splitting the party before splitting is were so-called king makers -- the Syndicate. After splitting the party in 1969 aided and by the war patriotism, in 1971 (Even I, as a 16 year old boy also was her admirer), she eliminated all the bigwigs-- Moararji/Kamraj/Chandraban Gupta ets, sending them to political exile. Rarely few reappeared like Morarji for a very brief existence.  Modi has stupid sense of history but is keen observer of real politic. He has already eliminated and send them to political exile equipped with the sense humiliation in helplessness. The new entrants from various outfits who have joined under Modi wave have no where to go at least for some time as know that their existence as MPs is due to him and the new plannings. But at times, owing to unpredictable reasons,  the Princes may not succeed and there is change in the person of Machiavelli's protagonist. The majority of MPs -- Present and the past Congressmen/women might come together and the tactics may snowball/backfire.

Friday, March 21, 2014

फेंकू-पप्पू

फेंकू-पप्पू हैं चोर चोर मौसेरे भाई
इनकी है ये आपसी लड़ाई
होती जब यसईज़ेड की बात
हो जाते दोनों साथ
विदेशी निवेश के दीवाने दोनों 
वालमार्टी मस्ताने दोनों
दोनों जब अमरीका जाते
विश्व-बैंक को शीश नवाते
गुर्राता जब बराक ओबामा
गीला हो जाता उनका पाजामा
किया केजरी ने जब अंबानी पर केस
मिलकर आपस में फैलाया भदेश
खुल रहा है धीरे-धीरे भेद नूरा-कुश्ती का 
दोनों की कारपोरेटपरस्ती का 
खुल जायेगा जिस दिन पूरा भेद
जनता देगी दोनों को खेद
शुरू करेगी जनता तब एक नया खेल
फेंकू-पप्पू की बना देगी रेल
अदानी और अंबानी जायेंगे जेल
कारपोरेटी लूट का खत्म करेगी खेल
होगा एक नये बिहान का आगाज़
आयेगा दुनियां में सचमुच का सुराज
होगी दुनियां तब आज़ाद 
जब आएगा किसान-मज़दूर का राज
( ईमिः22.03.2014)

नमो नमो स्वाहा

शौक है अपना मोदिआए ज़ाहिलों को रुलाने का
खॉब है हमारा एक सुंदर दुनिया बनाने का
हरामखोरी और दुख-दर्द को दूर भगाने का 
समता और जनवाद के ज़ज़्बात को जगाने का
किया फैसला हमने कंटीले रास्तों पर चलने का
पग-पग पर मौजूद ठोकरों को धता बताने का
नभ में चमक रही थी चपला  फिर भी नहीं तनिक मैं विचला
ओलों की बूंदाबांदी में  उदधि थहाने था जब निकला
छेड़ा है फासीवादी मंसूबों के खिलाफ अभियान
चलता रहेगा जब तक जान में है जान
मिटा देंगे मोदियापे का नाम-ओ-निशान
लायेंगे ही हम दुनिया में एक नया बिहान 
जागेगा इस मुल्क का छात्र-ओ-नवजवान
दफ्न हो जायेगा तब मोदियापे का शैतान
मुक्त होगा ज़ुल्म से मजदूर-ओ-किसान
मिट जायेगा ज़ुल्म-ओ-सितम का निशान
बनेगा तब इंसानियत का आलीशान मकान
न कोई रंक होगा न होगा कोई राजा
ताज़-ओ-तख्त का तब बज जायेगा बाजा.
होगा निज नियंत्रण अपनी सर्जनात्मकता पर
मालिकाना हक़ अपने श्रम की उत्पादकता पर
हक़ीकी इरादे हैं ये नहीं कोई फसाना 
आना ही है अब मानव-मुक्ति का नया जमाना.
और अंत में
लूट-खसोट स्वाहा, नमो नमो स्वाहा
फासीवाद स्वाहा, नमो नमो स्वाहा
हुटलर की विरासत स्वाहा, नमो नमो स्वाहा
अंबानी की गुलामी स्वाहा, नमो नमो स्वाहा
अदानी की दरवानी स्वाहा, नमो नमो स्वाहा
टाटा की रहनुमाई स्वाहा, नमो नमो स्वाहा
मोदियापे की ज़हालत स्वाहा, नमो नमो स्वाहा
(ईमिः21.03.2014)




Thursday, March 20, 2014

मोदी विमर्श 15

मोदी ने किसानों और आदिवासियों की जमीने अंबानियों-अदनानियों-टाटाओं औरक अपने अन्य कारपोरेटी ताऊ-चाचाओं को देकर, मुसलमानों को दोयम दर्जे का नागरिक बनाकर, सरकारी स्कूल बंद करके, किसानों की आत्महत्या करवाकर, टाटा को 17600 करोड़ (गुजरात की सालाना बज़ट का 25 प्रतिशत) टाटा को 0.1 प्रतिशत ब्याज पर 20 साल के लिए और अहमदाबाद के समीप 100 एकड़ जमीन टाटा को शहर बसाने के लिए देकर जरूर विकास का काम किया है. जिस अदनानी की बेटी की शादी में मोदी 2 दिन तक वर-बधू को आशिर्वाद देते  रहे उसे कच्छ के किसानों की 17500 एकड़ से अधिक जमीन 12 रूपये प्रतिवर्ग मीटर से भी कम दर पर अपने बाप की जागीर समझकर दान कर चुके हैं. किसानों की 170 आपत्तियां विचाराधीन हैं. विकास जरूर किया है मोदी ने लेकिन गुजरात का नहीं अपने कारपोरेटी आकाओं का विकास किया है, जिनका जरखरीद है यह जाहिल

Tuesday, March 18, 2014

लल्ला पुराण 139 (मोदी)

I am not biased towards Modi but biased towards democracy and justice against fascist tendencies represented by the criminal fascist named Narendra Modi who has sold out precious resources to his masters - Adanis, Ambanis and Tatas for throw away prices. In Germany, there were many sections who wanted Hitler but the fascist duffer do not read the miserable end of fascists in history as fascist criminals are bereft of any sense of history.

Is this development of Gujrat or development of Adani/Ambani/Tata... whom Modi has gifted thousands of hectare peasants lands on throw away prices and trillions worth resources as if he inherited them from his father? He must be tried for national theft. Modi has given 17600 crore loan to Tata for 20 years on 0.1% interest from state exchequer that is 25% of Gujarat's annual budget.

Those who have such judgmental statements are Sanghi duffers who do not know anything about communism or fascism. I* challenge all the devotees of Ambani's and Adani's agent, Modi, a duffer and murderer and rapist, t5o quote3 one word or act of this imperialist agent that proves him their God. If he did  not conduct the pogrom and the mass rape, he is inefficient administrator who could not stop heinousness crimes and must be in jail for dereliction of duty. I am not a communist for that one needs to be  a member of communist party but I enjoy seeing Sanghi duffers getting haunted by the specter of Communism on any reference of justice and downtrodden. Thank you for the compliment. Kashmir belongs to Kashmirs and is  not a fiefdom of your or Modi's father. Kashmiris will decide their own fate. बाकी जो हिटलर की चाल चलेगा वह उससे भी बुरी मौत मरेगा, मोदी अपनी राजनैतिक मौत मरने काशी आ रहा है. नमो नमो स्वाहा.

RSS is a CIA agent, Sanghi duffers need to read and apply their mind, which their training does not allow. Grow. Sanhi scoundrels do not make any substantiated argument but like Khomeini issue fatwas. If you have anything worth in minjd accept my challenge and quote one act or deed of this duffer who transports Texila to Bihar and  Bhagat Singh to Andeman that makess him your God and visionary, I will become your follower. But Sanghis do not argue they make only chauvinistic assertion and act as paid dogs of corporate.

Monday, March 17, 2014

याद-ए-लखनी

एक बार मैं भी यह बेवकूफी कर चुका हूं. बात 1978 की है, होली की नहीं उसके आस-पास की. हम लोगों का  एक कमबख़्त  दोस्त है, जावेद रसूल, हमारे ही जिले (आज़मगढ़) का. खुर्शीद को खुर नाम हमीं दोनों ने दिया था. 50-60 फीट दूर से देखने पर पता नहीं चलता था कि दाढ़ी रखे है. मैं और खुर उसे रसूलुल्ला कहते थे. ये फूटनोट के साथ कहानी शुरू करने की कु-आदत बुढ़पे तक चली आयी. खैर रसूल के बारे में फिर कभी. ओल्ड कैंपस लाइब्रेरी के बाहर बिशाल हरे मैदान के आखिर में अम्माजी के ढाबे जामुन के पेड़ के नीचे चाय-मंडली की चर्चा में लखनी (डंडी) का ज़िक्र आया और मैंने कहा यह पेड़ लखनी खेलने के लिए बहुत उपयुक्त होगा. इसके बाद जवेदा पेड़ पर चढ़ पाने के मेरे कौशल को चुनौती देने लगा और ताव-ताव में मैं चढ़ गया और तने से टेक लगाकर एक डाल पर बैठ गया. तभी निगाह पड़ी तमाशबीन लड़के-लड़कियों अर्धवृत्त पर और अपनी बेवकूफी के एहसास को छिपाने के लिए डाल पर ही चाय-सिगरेट के साथ थोड़ा दार्शनिक टच देने की कोशिस करने लगा. नाकाम. बहुत दिनें तक यह घटना अपनी लंपट मंडली के विमर्श का विषय बना रहा.

9-11 की उम्र में एक बार तो लखनी खेलते हुए नदी के किनारे एक जामुन के पेड़ की बहुत ऊंची डाल से गिर गया था, सौभाग्य से वह डाल नदी की तरफ थी और नदी में गिरा, वरना पता नहीं क्यया होता.  आज भी ठोढ़ी में उस वारदात का निशान मौजूद है. उस पारी के "चोर" ने चुनौती दी कि मुझे ही छुएगा. अगल-पगल, ऊपर-नीचे की डालियों पर उसे छकाने की बजाय मूर्खता में ऊपर ही चढ़ता गया और काफी ऊपर एक पतली डाल पकड़ कर मोटी डाल पर पैर चिकाने की सोचा तो हाथ वाली डाल टूट गयी. डाल से पानी तक की संक्षिप्त हवाई यात्रा में, ऊंचाई से पानी में कूदने की सुनी-सुनाई सारी विधायें याद आ रही थीं. फिर भी वस्तु के कम वजन के बावजूद mgh इतना था की वस्तु नदी के तल तक हपुंच गयी और ठुड्ढी, शायद शीपी से कट गयी. पानी की सतह पर खून तैरने लगा और जब तक उतराया नबीं सबकी जान अटक गयी थी. ठुड्ढी में फस जगह दाढ़ी नहीं उगती. 

मोदी लहर

मोदी लहर है एक अफवाह 
हिटलर के वारिसों की वाह वाह 
उठेगी बनारस से जो चिंगारी 
खाक करदेगी नगपुरिया मक्कारी
सिखलायेगी सबक इनको काशी
बनेगी जो मोदियापे की सत्यानाशी
नमो नमो स्वाहा, संघी जहालत स्वाहा
अंबानी की दलाली स्वाहा
अदानी की दीवानगी स्वाहा
टाटा की सेवा स्वाहा
काली टोपी स्वाहा
खाकी निक्कर स्वाहा
(ईमिः17.03.2014)

क्षणिकाएं 17 (381-92)

381
बहुत तेज होता है फासीवाद, करता है अफवाहें ईजाद
पैदा करने को फिरकापरस्त धर्मोंमाद, और फैलाने को नफरत की आग
करवाता है फिर भीषण जनसंहार, लूट, आगजनी और बलात्कार
मनाता है शौर्यदिवस मर्दानगी का, फासीवादी लंपटों की हैवानगी का
जानता है यह राज़ मुल्क का थैलीशाह, मुनाफे की फासीवाद में गुंजाइश अथाह
छिपकर ही नहीं खुलकर भी देता वह इसका साथ, दिख जाता है सबको बाजार का अदृश्य हाथ
लिख गये हैं गोरख पांडेय कुछ दशक पहले, उगती हैं दंगों की जमीन पर मतदान की फसलें
जागेगा ही आवाम लेकिन एक-न-एक दिन, होगा वह फासीवादी मंसूबों का अंतिम दिन
फैलेगी मुल्क में फिर से सामासिक संस्कृति, होगी नहीं जिसमें फिरकापरस्ती की विकृति
(ईमिः 27.02.2014)
382
खालिस इंसान
नहीं चाहता खुदा की बरक्कत इस दुनिया में
एक ही चाहत है मन में हमारे कि इस दुनिया में
कि हर किसी को बस इंसानियत का आयाम मिले
और दुनिया को अमन-ओ-चैन का बरदान मिले
न कोई भगवान बने न कोई हैवान बने
हर कोई खालिस इंसान सा इंसान बने
(ईमिः 03.03.2014)
383
विकास दर
बढ़ता ही जाता है गरीबी और भूख का राज
होता है जैसे-जैसे पूंजीवाद का विकास
करता है इंसान उत्पादन के नये तरीके ईज़ाद
हो जाती श्रम-शक्ति की उत्पादकता इफरात
बढ़ता है श्रम का उत्पाद, होता समृद्ध समाज
हड़प लेता सबकुछ मगर थैलीशाह दगाबाज
लेती जितनी ही ऊंची उछाल विकास दर
होता उतना ही परेशान और हताश कामगर
निकलेगी ही इस हताशा से एक नई आशा
होगी वर्गचेतना से दूर एकाकीपन की निराशा
होगा मेहनत के फल पर मेहनतकश का अधिकार
होगा मानव-मुक्ति का सपना जब साकार
बढ़ेगा जितना ही तब विकास दर
उतना ही होगा खुशहाल कामगर
(ईमिः08.03.2014)
384
महिला दिवस पर
बिना लड़े कुछ भी नहीं मिलता, लड़ना पड़ता है हक़ के एक एक इंच के लिए
महिला दिवस दुनिया को दो यह उपहार, बंद करो सहना और करो प्रतिकार
मर्दवाद के दुर्गद्वार पर निरंतर प्रहार, हिल रही हैं दीवारें नारी प्रज्ञा के उभार से
ध्वस्त कर दो बुनियाद दावेदारी के वार से
खंडहर पर इसके बनेगा नया आसियाना, जौर-ज़ुल्म व भेदभाव हो जाएगा बेगाना
औरत और मर्द हैं एक से इंसान, हक़ भी हों दोनों के एक समान
नहीं ये लड़ाई महज नारी मुक्ति की, छिपा है भेद इसमें समानता की शक्ति की
होगी बंधनमुक्त जब आधी आबादी, मानवता को मिलेगी तभी पूरी आज़ादी
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर मेरा यही कलाम, नारी प्रज्ञा ओ दावेदारी को लाल सलाम
(ईमिः07.03.2008)
385
दोगलेपन की पहचान है संघी, सांम्राज्यवाद का कारिंदा संघी
सच से रहता दूर है संघी,. अफवाहों का पुलिंदा है संघी
पैदल होता दिमाग से संघी, करता ज़हालत का प्रसार है संघी
लाशों का ब्यापारी संघी, नफरत का हुंकारी संघी
आवाम का है दुश्मन संघी, टाटा का सेवक है संघी
अंबानी का राजदुलारा संघी, गांधी का हत्यारा है संघी
लगाता गांधीवाद का नारा संघी, अमरीका का दरबारी  संघी
हिटलर का है पुजारी  संघी, फासीवाद का हरकारा संघी
गांधी का हत्यारा संघी, देता गांधीवाद का नारा संघी
करता पीयम का ऐलान है संघी, बघारता तटस्थता ज्ञान है संघी
फैलाता नफरत का ज़ुनून है संघी, बताता इसको कुदरत का कानून संघी
बजरंगी हैवान है संघी, मोदियापे की शान है संघी
.................,
(ईमिः12.03.2014)
386
पुनश्चः
खाक में मिल गये जब सब हिटलर हलाकू
किस खेत की मूली हैं वहाबी-बजरंगी फेकू
टकराती है काली टोपी जब भी आवाम से
भष्म हो जाती है जंग-ए-आज़ादी के ताप से
धर्म-जाति की तंद्रा से जब जागेगा इंसान
मिट जायेगा गोली-टोपी खाकी-निक्कर का निशान
आयेगी ही जब जनवाद की आंधी
धूल में मिल जायेंगे सब नकली गांधी
(ईमिः12.03.2014)
387
पुनः पुनश्च
सुन असलियत अपनी बौखलाता है संघी
गाली-गलौच में बड़बड़ाता है संघी
(ईमिः12.03.2014)
388
है जहां तक एमजे अकवर की बात
दिखा दी उनने भी अपनी औकात
हुई है  ऐसी जरूर कोई खास बात
गिरगिट बन जाते हैं लोग रोत-ओ-रात
(ईमिः11.03.2014)
389
सवाल करते रहो मिलेगा ही जवाब कभी-न-कभी
सुबह ही की तरह शाम जश्न मनाओ मिल सभी
छेड़ो दिल से कोई इंक़िलाबी राग 
सीने में दहकेगी प्रज्वलित आग
मक्सद नहीं है ज़िंदगी का खोना या पाना 
मक्सद है जीने का लुत्फ उठाना 
जीने में हैं ग़र उसूलो-ओ-सरोकार
मिलते हैं अनचाहे परिणामों के उपहार
करते रहो सवाल हर बात पर बार-बार
मिलते रहेंगे नये-नये जवाब  लगातार
होता है इसी से ज्ञान का विकास 
करता है मानव सायास प्रयास 
बदलता है मानव जीने के हालात 
पाता है समाज उपलब्धियों की सौगात
(ईमिः15.03.2014)
390
पड़ता है कोई शख्स जब दल-बल पर भारी
बन जाता है वह तब एक  क्रूर अत्याचारी
करता है मुल्क के साथ  धोखाधड़ी और फरेब
कहता है इन सबका है जिम्मेदार औरंगजेब
फैलाता है मुल्क में  नफरत का संदेश
तोड़ता है पार्टी पहले फिर तोड़ता है देश
देता है जनसंहार और बलात्कार का आदेश
हैवानगी को अपनी बताता है जनादेश
पढ़ता नहीे है वह इसीलिए कोई इतिहास 
कि तानाशाहों का होता है सदा सर्वनाश 
चाहते हैं ग़र हमारा-अपना-मुल्क का भला 
चुनावी हवनकुंड में कर दें नमो-नमो स्वाहा
(ईमिः15.03.2014)
391
हर हर मोदी का यह उंमादी उत्पात
नहीं कर पायेंगे भोले शंकर भी बर्दाश्त
हुई है कलंकित काशी पहले भी मानवता के हत्यारों से
अल्ला-हो-अकबर और हर हर महादेव के नारों से
थैलीशाह के इशारे पर फैलाते हैं ये अफवाहें औ उन्माद 
और बताते है इसमें अल्लाह और महादेव शंकर का हाथ
करवाते लूट-पाट और गरीब से गरीब का रक्तपात 
मार-काट, आगजनी, बलात्कार और लूटपाट 
काशी नगरी में फैला देते थे  नफरत की आग
अलापते हुए अल्लाह और महादेव का राग
बहुत छली गयी है काशी अब और नहीं छलायेगी
मज़हबी तंद्रा से काशीवासियों को जगायेगी
बनायेगी उनको हिंदू-मुसलमान से इंसान 
हर हर मोदी का मिटा देगी नाम-ओ- निशान 
काशी की खाशियत की है एक और बात 
आते हैं यहां सभी पापी धोने अपना पाप 
धो नहीं पाती है गंगा जिन पापियों के पाप 
करवाती है नगरी यह उनसे पश्चाताप 
पहुंचा देती है वरना उनको मनिकर्णिका घाट 
(ईमिः16.03.2014)
                                                                                                     392
मोदी लहर है एक अफवाह, हिटलर के कुत्तों की वाह वाह
उठेगी बनारस से जो चिंगारी, खाक करदेगी नगपुरिया मक्कारी
सिखलायेगी सबक इनको काशी, बनेगी जो मोदियापे की सत्यानाशी
नमो नमो स्वाहा, संघी जहालत स्वाहा, अंबानी की दलाली स्वाहा
टाटा की कुत्तागीरी स्वाहा, काली टोपी स्वाहहा
खाकी निक्कर स्वाहा, नमो नमो स्वाहा