Sunday, June 30, 2019

लल्ला पुराण 234 (जेयनयू-चीन)

Raj K Mishra कितनीबार साबित हो चुका कि टुकड़े टुकड़े नारे बजरंगी घुसपैठियों ने लगाए थे, वीडियो में शिनाख्त के आधार पर एबीवीपी के सौरभ शर्मा पर जुर्माना भी लग चुका है, 3 साल से अधिक समय में पुलिस चार्जशीट नहीं दाखिल कर पाई है, लेकिन कुंद दिमाग में छी न्यूज की अफवाह ऐसी बैठ जाती है कि निकलती ही नगहीं। आपसे तो ऐसी अविवेकी बजरंगपन की उम्मीद नहीं थी। असली नक्सली और असली बजरंगी एक माइंडसेट है। कटु भाषा के लिए माफ करिएगा।

पहली बात तो चीन ने आक्रमण नहीं किया था, भारत ने सैन्य जमावड़ा शुरू किया था, नील मैक्स की किताब इंडियाज वार ऑन चाइना हमारे गृह मंत्रालय के दस्तावेदों के आधार पर है। दूसरी बात किसी ने चीन की तरफदारी नहीं की थी कम्युनिस्ट पार्टी ने युद्ध का विरोध किया था। हम हर युद्ध का विरोध करते हैं। युद्ध अपने आप में गंभीर मसला है, यह किसी मसले का समाधान नहीं हो सकता। युद्ध में कोई विजयी नहीं होता, सभी पक्ष तबाह ही होते हैं। युद्धोंमादी राष्ट्रवाद मानवता विरोधी हैवानियत है।

लल्ला पुराण 233 (असहमति)

Anand K Singh समाज बहुत लोगों से नहीं, बहुत किस्म के लोगों से बना है, असहमति स्वाभाविक है, किंतु असहमति फतवेबाजी पर नहीं तथ्य-तर्कों पर आधारित होनी चाहिए। हम शिक्षकों को अपनी बात जिस भी भाषा में कहें अभिव्यक्ति तार्किक होनी चाहिए।

लल्ला पुराण 232 (धर्म)

पढ़ लिया। धर्म धृ धातु वसे बना है धर्म का मतलब है to hold together वर्णाश्रम समाज में माना जाता है कि वर्णाश्रम व्यवस्था ही समाज को एक साथ धारण कर सकती है, इसीलिए सनातन या ब्राह्मणीय धर्म वर्णाश्रम धर्म है। इस्लाम या ईशाइयत भी पूजा पद्धति के अलावा सामाजिक आचार संहिता भी हैं। इस्लाम तो राजनैतिक आचारसंहिता भी है। इसीलिए राजनीति में इस्लामी धर्म का घासमेल ज्यादा आसान है। नमस्कार, बाकी फिर।

लल्ला पुराण 231 (अकबर)

Arvind Rai 100 साल बहुत होता है। वैसे मगल साम्राज्य का पतन 1757 में पूरा मानाजा सकता है। आज तक जमीन की पैमाइश (टोडरमल द्वारा विकसित), मालगुजारी पटवारी, डाक व्यवस्था आदि उसी के जमाने का चल रहा है। समुद्रगुप्त के बाद अकबर पहला शासक हुआ जिसने मुल्क की सीमा को संवर्धित एवं सिव्यवस्थित किया। अशोक के बादपहला शासक हुआ जिसने सारा राज्य एक सुव्यवस्थित केंद्रीय प्रशासनिक नेटवर्क के तहत सुगठित किया। समुद्रगुप्त का साम्राज्य छत्रप व्यवस्था से चलता था। मंत्रियों को गुण-दोष के आधार पर चुना जाति-धर्म के आधार पर नहीं। ऊपर की सारी बातें बकवास हैं।

Saturday, June 29, 2019

बुर्के-घूंघट को तार-तार करने वाली स्त्रियां

पवित्रता की अग्निपरीक्षा देकर
अपवित्रता के संदेह में निर्वसन स्वीकारने वाली त्रेता की सीता
नहीं बन सकती मर्दवाद के राक्षस से लड़ने की शक्ति
वह धरती में समा ही सकती है परित्यक्त आभूषण की तरह
न ही पांच भाइयों में बंटने वाली तीरंदाजी की प्रतियोगिता की पुरस्कार
जुए में माल की तरह दांव पर लगाई जाने वाली द्वापर की द्रौपदी
बन सकती अंतरिक्ष नापने वाली आज की स्त्री की मिशाल
सोने के पिंजरे में गौरवान्वित मैना नहीं समझ सकती आजादी का मतलब
इसीलिए मुझे अच्छी लगती हैं
बुर्के और घूंघट को तार-तार करने वाली स्त्रियां
आसमां की सीमाओं को चीर कर नई ऊंचाई गढ़ने वाली लड़कियां
मर्दवादी मर्यादाओं को चकनाचूर करने वाली लड़कियां
सती सावित्री को नहीं
मैरी वोलस्टोनक्राफ्ट और रोजा लक्जंबर्ग को आदर्श मानने वाली लड़कियां
पाजेब को तोड़कर झुनझुना और आंचल को फाड़कर परचम बनाने वाली लड़कियां
आजादी की नई परिभाषा गढ़ने वाली लड़कियां
प्रतिबंधों और निषेधों का निषेध कर आजादी की नई परिभाषा गढ़ने वाली लड़कियां
क्योंकि सारे प्रतिबंध और वर्जनाएं मर्दवाद के औजार हैं
स्त्री यौनिकता पर नियंत्रण के जरिए उसके व्यक्तित्व परलनियंत्रण के।
(ईमि:29.06.2019)

Friday, June 28, 2019

ईश्वर विमर्श 82 (धर्म और विज्ञान)

धर्म तथा विज्ञान के अंतरविरोध की एक पोस्ट पर विमर्श में युवा मित्र सुनीत ने राय दी कि धर्म और विज्ञान परस्पर पूरक हैं, उस पर मेरा एक कमेंट:

Sunit Kumar वे किस आशय से बोल रही हैं ये तो Sushila जी ही बेहतर जानती हैं, मुझे लगता है उनका आशय महाभारत में वर्णित कृष्ण द्वारा द्रौपदी की चीर हरण से रक्षा है और पूछ रही हैं कि अब भगवान लड़कियों को बचाने अब क्यों नहीं आते? गीता में कृष्णनखुद को भगवान घोषित करते हैं और कहते हैं कि वे बार बार धर्म की रक्षा में अवतार लेते हैं। गीता का धर्म वर्णाश्रम धर्म है। इस्लाम और ईशाइयत में भी भगवान का कोई रूप नहीं है, उनके भी भगवान निर्गुण हैं। कबीर स्थापित धर्मों की मान्यताओं पर तर्क करते हैं, जबकि धर्म आस्था की वेदी पर तर्क की बलि देते हैं। इसीलिए धर्म और विज्ञान एक दूसरे के पूरक नहीं बल्कि विरोधी हैं।

Thursday, June 27, 2019

लल्लापुराण 230 (हिंदू राष्ट्र)

Alok Shukla गर्व अपनी उपलब्धियों पर करना चाहिए न कि प्रकति प्रदत्त संयोग पर। जिसके पास गर्व करने को कुछ नहीं होता वह जन्म के संयोग पर गर्व कर सकता है। राष्ट्र मनोवैज्ञानिक नहीं, सुपरिभाषित राजनैतिक अवधारणा है। हिंदू राष्ट्र की अवधारणा कहां से आएगी? धर्म आधारित राष्ट्र की अवधारणा राष्ट्र की विकृति है। धर्म आधारित पाकिस्तान की दुर्गति देख ही रहे हैं। यदि धर्म राष्ट्र का आधार होता तो पाकिस्तान विखंडित न होता। अभी तो बलूचिस्तान एवं अन्य राष्ट्रीयताएं भी आंदोलित हैं। हिंदू राष्ट्र बनाकर आप भारत को भी विखंडित करना चाहते हैं? पड़ोसी मैला खाए तो आप भी मैला खाना चाहेंगे? क्रिया-प्रतिक्रिया के अपराध प्रवृत्ति से ऊपर उठने की जरूरत है। राष्ट्रवाद पर हिंदी-अंग्रेजी लेखों के लिंक शेयर किया हूं, देख लें तो अनुग्रहित महसूस करूंगा।