ये देवी-देवता इतने कमजोर क्यों होते हैं की उनकी रक्षा में बेचारे भक्तों को लंपटता पर उतारू होना पड़ता है? किसी भी तरह की धर्मांधता की बात करो तो सब धमकी देंगे कि किसी दूसरे धर्म के बारे मे बात करके देखो! धर्मांधता की बेहूदगी पर ब्राह्मणवाद (क्यों कि हिंदू तो कोई पैदा नहीं होता कोई बाभन पैदा होता है कोई दलित) का एकाधिकार नहीं है। सब धर्मों की यही हाल है। सुकरात को जहर पीना पड़ा था, दार्शनिक-वैज्ञानिक ब्रूनो को चर्च के फैसले से चौराहे पर जिंदा जला दिया गया था और आस्थवान जाहिल तमाशा देख रहे थे जिस तरह गोमांस खाने के संदेह में 200 सोहदे एक 16 साल के लड़के की हत्या का तमाशा देख रहे थे, उसी तरह जैसे नस्लोंमादी जर्मन नरभक्षी यहूदियों की प्रताड़ना का तमाशा देख रहे थे । यही हाल गैलेलियो की धर्म के ठेकेदारों द्वारा हत्या की थी। इन इतिहास पुरुषों के जाहिल हत्यारों का नाम कोई जानता है?पढ़े-लिखों की जहालत देखकर शिक्षक होने पर शर्म आती है कि हम बच्चों को कैसी 'वैज्ञानिक शिक्षा' दे रहे हैं कि वे जन्म की जीववैज्ञानिक दुर्घना की अस्मिता से उबर नहीं पाते? हिंदू-मुसलमान से चिंतनशील इंसान नहीं बन पाते?
एक धर्म की अधोगामी प्रवृत्ति दूसरे धर्म की अधोगामी प्रवृत्ति की वैधता नहीं है। सभी धर्म आस्था की वेदी पर विवेक की बलि देने के चलते अधोगामी है, ब्राह्मण(हिंदू) धर्म सर्वाधिक अधोगामी है क्यों कि अन्य धर्मों में समानता की सैद्धांतिक संभावना है, हिंदू पैदा ही असमान होता है चूंकि इसके सर्जक ब्रह्मा हैं और ईश्वर की कृति अपरिवर्तनीय होती है। जिस धर्म का सर्जक ही अन्याय का सर्जक है उस धर्म को न्यायपूर्ण कैसे साबित किया जा सकता है। वैसे धर्म की सियासत करने वाले सारे एक जैसे जनद्रोही हैं चाहे मुहम्मद को मशीहा मानने वाले हों चाहे ब्रह्मा को सर्जक या राम को अवतार मानने वाले।
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