पिजड़े तोड़ती इंकलाबी बेटियों को सलाम
क्या नारे लगा रही हैं लड़कियां
कर रही हैं किस-पिज़ड़े की बात?
यह कैसा अजीबोगरीब गीत है
रीति-रिवाज़ जिससे भयभीत है?
यह कैसा आज़ादी का नारा है
मां-बाप तक को ललकारा है?
धज्जी-धज्जी कर गौरवशाली संस्कार
डफली की धुन पर गाती-नाचतीं भरे बाजार?
मांगती अगर महज पढ़ने-लिखने का अधिकार
किया जा सकता है उस पर साहानुभूतिक विचार
मांग रही हैं लेकिन ये प्यार भी करने का अधिकार?
इन पर भी हावी है आजादी का जेयनयू-विचार
जी हां ये लड़कियां मांग नही रही हैं आजादी
जंगे आजादी का ऐलान कर रही हैं
तोड़ कर सारे पिजड़े
चाहे वे सोने-चांदी के ही क्यों न हों
मर्दवाद को खबरदार कर रही हैं
आजादी की नई परिभाषा गढ़ रही हैं
स्त्री प्रज्ञा और दावेदारी के रथ को दिशा दे रही हैं
मर्दवाद के दुर्ग पर लगातार प्रहार कर रही हैं
नए नए गीत लिख रही हैं
अपनी आजादी को मानव मुक्ति से जोड़ रही हैं
पिजड़े जार-जार करती बहादुर बेटियों को इंककलाबी सलाम।
(ईमि:25.07.2017)
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