शायद मैं अपनी बात ढंग से नहीं रख पाया, जनाधार का मतलब कतई क्रांतिकारी होना नहीं है। 1848 की क्रांति में क्रांतिकारी पार्टी और सही लाइन ब्लांकी के नेतृत्व में सर्वहारा संगठनों का था लेकिन सामाजिक चेतना के तत्कालीन स्तर के लिहाज से व्यापक, खासकर ग्रामीण जनाधार बोनापर्टवादियों का था और 2 चुनावों के बाद 1851 में संसद भंगकर वह सम्राट बन गया। जाहिर है गांधी दलालों के साथ थे और इसलिए नहीं लिख रहा हूं कि मैं गांधी को सही और भगत सिंह को गलत बता रहा हूं, मैं हमेशा भगत सिंह के विचारों के साथ रहा हूं गांधी के नहीं। जहां तक मेहनतकश की बात है उसका बहुमत मिथ्याचेतना के चलते भगवा अंगोछा लपेट कर बजरंगी लंपट बना हुआ है, इसीलिए मैं लगातार सामाजिक चेतना के जनवादीकरण की बात को रेखांकित करता रहा हूं। क्योंकि क्रांति सर्वहारा ही करेगा लेकिन वर्गचेतना से लैस हो संगठित होने के बाद।
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यह बात इतने छोटे फुटनोट के साथ क्यों?
ReplyDeleteविस्तार में और कहीं लिखा है, (समाजवाद 5 औक समाजवाद 6) यह फेसबुक की एक पोस्ट पर एक कमेंट था।
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