Sandeep Yadav तुम्हारी सोच जड़मति भक्तों सी है. साल भर में मानसिक गुलामी से थोड़ा-बहुत मुक्त हुए हो। भक्त वही होता है जो दिमाग बंद कर आस्था करता हो। साल भर तुम्हें पढ़ा-पढ़-सुन कर यही निष्कर्ष निकला है कि तुम्हारी दिमागी जड़ता की जड़ें इतनी गहरी हैं कि उन्हें समूल नष्ट करने के लिए तुम्हें उसमें मट्ठा डालना पड़ेगा लेकिन भक्त डरपोक होता है, उसमें आत्मावलोकन का साहस नहीं होता। सोचने का साहस करो, भक्त से इंसान बनने की संभावनाएं सभी में रहती हैं।
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