साथी जितेंद्र ,मैंने कब कहा कि जनाधार से क्रांति होती है? फिर तो बोर्नापार्ट, हिटलर या इंदिरा गांधी.... क्रांति कर चुकी होते, क्रांति के लिए सैद्धांतिक स्पष्टता अनिवार्य है लेकिन सिदधांतो से ही क्रांति होती तो मार्क्स के नेतृत्व में फर्स्ट इंटरनेसनल के तत्वाधान में 19वीं सदी में कम्युनिस्ट क्रांति हो गयी होती. मार्क्स ने सामाजिक चेतना के स्वरूप को देखते हुए इंटरनेसनल के उद्बोधन की भाषा को मेनिफेस्टों की तुलना में लचीली बनाया। लेकिन बिना जनाधार के क्रांति फिलहाल असंभव है। क्रांति के लिए बगावत जज्बात जरूरी है लेकिन जज्बात क्रांति नहीं होती जैसा भगत सिंह ने कहा है उस पर क्रांतिकारी विचारेों की शान चढ़ानी पड़ती है औक क्रांतिकारी विचारों से भी क्रांति नहीं होती उन्हें जनता में प्रसारित करने से होती है। इसलिए क्रांति के लिए जनाधार जरूरी है और क्रांतिकारी विचार भी। दोनों के द्वंद्वात्मक योग से ही क्रांति होती है। इसी लिए मैं बार बार मौजूदा सड़ांध मारती सामाजिक चेतना के जनवादीकरण पर जोर देता हूं।
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