साथी मैं सिर्फ यही कह रहा हूं कि क्रांतियों का इतिहास हमें यही बताता है कि जनसमर्थन के बिना क्रांतियां अति अल्पजीवी रही हैं इसीलिए प्राथमिकता जनांदोलनों के जरिए सामाजिक चेतना का जनवादीकरण होनी चाहिए जिससे क्रांतिकारी जनाधार बने। यचयसआरए के पास अगर जनाधार होता तो 1930 के दशक में सर्वहारा क्रांति हो चुकी रहती। हमारा काम है समाजवादी चेतना का प्रसार, जिससे सर्वहारा में बुर्जुआ पार्टियों के जनाधार को तोड़कर क्रांतिकारी कतार में खड़ा किया जा सके। मेरी बात को निजी मत लीजिए।
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