एक विचारधारा के रूप में ब्राह्मणवाद का विरोध किसी खास या आम ब्राह्मण का विरोध नहीं है ठीक उसी तरह जैसे अहीरवाद की आलोचना किसी खास या आम यादव की आलोचना नहीं है, बल्कि जातिवाद का निषेध है। मैं जब बाभन से इंसान बनने की रूपक में बात करता हूं तो उसका यही मतलब होता है कि व्यक्तित्व का निर्धारण जीववैज्ञानिक दुर्घटना की अस्मिता से नहीं, समाजीकरण और विवेक से अर्जित अस्मिता से होता है। जातीय-धार्मिक अस्मिताओं के आधार पर लामबंदी सामाजिक चेतना के जनवादीकरण में सबसे बड़ी बाधाओं में है, उतनी ही बड़ी जितनी कि मध्यवर्ग की अवसरवादिता.
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