Friday, July 14, 2017

मार्क्सवाद 61 (सेना)

मैं किसी सैनिक की नहीं, सैनिकतंत्र और सेना के नाम पर राष्ट्रोंमाद की बात कर रहा हूं। सभी राष्ट्रों का शासक वर्ग यही करता है। जंग कभी विदेशी कारणों से नहीं होती अंदरूनी सियासत का मामला होता है। अब तो मरणासन्न सीआई एजेंट ने भी,उस समय के अपने राष्ट्रवादी राष्टोंमाद पर अफसोस जताते हुए, वर्ल्डटॉवर विस्फोट को सीआईए प्रायोजित बताया है जिस बहाने अमरीका ने अफगानिस्तान पर हमला किया और अमरीकी गरीब सैनिकों ने राष्टधर्म निभाते हुए, बच्चों-बूढ़ों समेत लाखों अफगानियों को मौत के घाट उतार दिया, जिनसे उनमें से किसी की किसी से कोई अदावत नहीं थी। जंग चाहता जंगखोर ताकि राज कर सके हरामखोर। हबीब जालिब ने लिखा है, "न तेरा घर है खतरे में, न मेरा घर है खतरे में/वतन को कुछ नहीं खतरा, निज़ाम-ए-ज़र है खतरे में." जरूरत जंगखोरी के खिलाफ जनमत बनाने की है, क्योंकि पूंजी का कोई राष्ट्र नहीं है इसलिए मजदूर का कोई राष्ट्र नहीं होता, वह अधिकारों के प्रति सचेत हो, संघर्ष न शुरू कर दे इसी लिए उसे धर्म और राष्ट्रवाद की अफीम खिलाई जाती है जिससे वह भूखे पेट राष्ट्रोंमाद और धर्मोंमाद के नशे में पड़ा रहे। लेकिन कोई भी नशा साश्वत नहीं होता, टूटता ही है और जब टूटेगा तो उसकी गूंज से ही शरमाएदारों और महंगे में श्रम बेचने वाले, शासक वर्ग की खुशफहमी में जीने वाले मध्यवर्ग में बौखलाहट मच जाएगी और मध्यवर्ग का एक तपका मजदूर होने का एहसास कर पाला बदल देगा। वह दिन कभी तो आएगा, इस नही तो अगली, नहीं तो उससे अगली ... पीढ़ी। इतिहास की गाड़ी में रिवर्स गीयर नहीं होती, कभी भी आज की तरह यू टर्न ले लेती है।

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