निश्चित ही सर्वप्रथम यचयसआर ने ही स्पष्ट क्रांतिकारी कार्यक्रम बनाया लेकिन इसके पास न तो जनाधार था न जनसमर्थन। भगत सिंह की गिरफ्तारी के बाद ही देशभक्त के रूप में जनसमर्थन मिला, क्रांतिकारी कार्यक्रम के नाते नहीं। इसका स्पष्ट कारण है, सामाजिक चेतना का स्वरूप, जिसे मार्क्स पेरिस मैन्युस्क्रिप्ट से शुरू कर जर्मन आइडियालॉजी, मैनिफेस्टो, फ्रांस में वर्ग संघर्ष, एटींथ ब्रुमेयर, राजनैतिक अर्थशास्त्र की समीक्षा के प्रक्कथन, पूंजी, फ्रांस में गृहयुद्ध और बाद के लेखों में दुहराते रहे हैं. सामाजिक चेतना के स्वरूप का स्तर हमारे छात्र काल की तुलना में, जनवादीकरण की दृष्टि से नीचे गिरा है। मेरी राय में सभी क्रांतिकारी संगठनों का फोकस, सामाजिक चेतना के जनवादीकरण यानि सामाजवादी चेतना (वर्गचेतना का प्रसार ) पर होनी चाहिए, जिसके कार्यक्रम और रणनीति स्थानीय परिस्थितियों और सामाजिक चेतना के स्तर को देखते हुए बनना चाहिए। भगत सिंह सामाजिक चेतना के स्वरूप के स्तर की दृष्टि से वक्त से आगे थे , गांधी वक्त के साथ। मैं गलत हो सकता हूं और राय बदलने को उत्सुक रहूंगा।
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सुन्दर लेख,
ReplyDeleteस्वागत है मेरे नए ब्लॉग पोस्ट #भगवान पर|
https://hindikavitamanch.blogspot.in/2017/07/god.html
यदा-कदा आपका ब्लॉगदेखता रहता हूं।
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