Sunday, December 30, 2012

तारीख गवाह है


तारीख गवाह है
ईश मिश्र 

लाल सलाम साथी.
निश्चित ही  नया सवेरा आएगा
मैं नहीं, आवाम लायेगा
उसके छोटे-छोटे पुर्जे हैं हम
मिल जाएँ तो हममे अपार है दम
करती हैं कई छोटी नदियाँ मिल महानदी का निर्माण
भरते हैं ये पुर्जे युग्कारी मशीन में प्राण
आएगा ही नया, नया विहान
होंगे कर्णधार अबकी छात्र-मजदूर किसान
न होगा कोई मालिक न कोई गुलाम
समता का सुख भोगेगा सभ्य इंसान

तारीख गवाह है, आये हैं पहले भी कई नए विहान
लेकिन चंद तेज-तर्रार ही चलाये थे वे अभियान
पहले भी  ज़ुल्मतों के दौर  होते रहे हैं नेस्त-नाबूद
बनता रहा है मगर, नए जालिमों का वजूद
इसीलिये  नया होगा यह नया बिहान
ज़ुल्म के मातों के बहुमत का यह अभियान
न होगा कोई ज़ालिम न कोई  ज़ुल्म
समता के सिद्धांत का होगा सबको इल्म
गुलामी का किसी को अधिकार न होगा
हर इंसान को आज़ाद होना ही होगा
बिलकुल उजला होगा नया बिहान
अँधेरे का न होगा नाम-ओ-निशान
लाल सलाम
[ईमि/३१.१२.१२]

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