जनहस्तक्षेप: फासीवादी मंसूबों के खिलफ एक अभियान
नई दिल्ली
अशोक पेपर मिल में पुलिस गोलीबारी में मजदूर की मौत की जनहस्तक्षेप के जांच
दल की रिपोर्ट का सारांश
१० नवंबर २०१२ को
अशोक पेपर मिल से निदेशक, धर्म गोधा द्वारा अवैध रूप से मशीनरी एवं अन्य चीजें कबाड़
के रूप में बेचने के प्रयास का विरोध करने वाले निहत्थे मजदूरों पर पुलिस और गोधा
के निजी सुरक्षाकमियों द्वारा गोलीबारी में सुशील नामक एक २४ साल के नवविवाहित
युवक की मौत हो गयी और २ लोग घायल हो गए. गोली सुशील की कनपटी से घुसकर सिर से
बहार निकली थी और १८ वर्षीय जयकुमार यादव को भी सर में गोली लगी लेकिन बच गया.
यानि कि कमर के ऊपर निशाना लगाकर गोले चलाई गयी थी. अशोक पेपर मिल की कहानी
औपनिवेशिक शासकों द्वारा बर्बरतापूर्वक शिल्प उद्योगों के विनाश की यादें ताज़ा कर
देती हैं. नव उदारवादी नीतियों के तहत सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योगों को नष्टप्राय
करके औने-पौने दामों में देशी विदेशी पूंजी पतियों बेचकर उनके मुनाफे और लूट का पथ प्रशस्त किया जा रहा है.
कुछ मामलों में तो यह राजनेताओं और नौकरशाहों की मिलीभगत से सार्वजनिक संपत्ति और
संसाधनों की खुली लूट का रूप ले चुका है. लालची पूजीपतियों द्वारा सरकारी मिलीभगत
बिना किसी उत्पादन के, विशुद्ध लूट से मुनाफा कमाने का अशोक पेपर मिल की कहानी
ज्वलंत उदाहरण है.
१९५८ में
म्राहाराज दरभंगा द्वारा दरभंगा के पास बागमती नदी से लभग एक किलोमीटर दूरी पर ४००
एकड़ से अधिक जमीन पर स्थापित अशोक पेपर मिल अपने बेहतरीन कागज़ के लिए देश-विदेश
में मशहूर थी. यह खेतिहर जमीन किसानों से रोजगार के वायदे और विकास की संभावनाओं
के तहत अधिग्रहित की गयी थी. १९७० में भारत सरकार ने इसका अधिग्रहण कर लिया.
भ्रष्टाचार और कुप्रबंधन के चलते १९७८ से मिल की दक्षता में कमी आने लगी और १९८२
में उत्पादन निलंबित हो गया. मिल में उस समय १२०० कर्मचारी काम करते थे, जिनमें
ज्यादातर स्थानीय गाँवों के थे, जिनकी जमीनों पर मिल बनी थी.
अशोक मिल कामगार
यूनियन बिहार और केन्द्र सरकारों के दरवाजे खटखटाती रही. १९८८ में मामला
बी.फ़.आई.आर में पहुंचा. १५ नवम्बर १९८९ को एक समझौते के तहत तय हुआ कि बिहार सरकार
इसका अधिग्रहण करे और केन्द्र सरकार की वित्तीय और तकनीकी मदद से इसका पुनरुद्धार
करे. १९९१ में सर्वोच्च न्यायालय ने भी इसे लागू करने का आदेश जारी किया. लेकिन तब
तक तो सकारें भूमंडलीकरण की नीतियों के तहत हर मर्ज की दवा निजीकरण में खोजने लगी
थी और इस मामले में हाथ पर हाथ धरे बैठी रही. १९९५ में सर्वोच्च न्यायालय ने
ऊद्योग और विकास मंत्रालय के सचिव को मिल के पुनरुद्धार की सम्भावनायें तलाशने को
कहा. उन्होंने दो चरणों में, निजीकरण के जरिये मजदूरों के हितों को ध्यान में रखते
हुए, पुनरुद्धार की ३८सूत्रीय एक योजना
न्यायालय में पेश किया जिसे जुलाई १९९६ में न्यायालय ने मंजूरी दे दी. १९९७ में
सर्वोच्च नयायालय ने इस योजना को अंतिम रूप दिया. इसके तहत करमुक्त १६ किश्तों में
६ करोड़ रूपये देकर धर्म गोधा की कंपनी, एनसीएफएल बिहार और आसाम सरकार के शेयर खरीद
कर एक न्यासी के रूप में मिल का अधिग्रहण करके १८ महीने के अंदर उसे चालू करे.
गोधा ने २०१२ तक सिर्फ पहली दो किश्तें ही जमा किया था अलबत्ता उसके नाम पर
सार्वजनिक बैंकों से ३० करोड़ से अधिक का ऋण ले लिया. ३८ सूत्रीय योजना की अहम
बातों में सभी उपलब्ध कर्मचारियों की बहाली और मिल से कोई भी सामान ले जाने की
मनाही भी शामिल थी. सर्वोच्च न्यालायालय के आदेश को धता बताते हुए, सही अर्थों में
मिल तो कभी चालू ही नहीं हुई. १९९८ में गोधा ने मिल के एक ट्रायल-रन का नाटक जरूर
किया जिसकी सनद का इस्तेमाल करके उसने यूनियन बैंक से कार्यकारी पूंजी के नाम पर
८५० लाख रूपये का और ऋण हासिल कर लिया.
एक बात शुरू से
ही साफ़ हो गयी थी की मिल चलाने में गोधा की कोई रुचि नहीं थी. उसने मजदूरों के
विरोध के बावजूद मिल की मशीनें और कल-पुर्जे उखाड़-तोड़ कर कबाड में बेचना शुरू कर
दिया. यह चोरी पुलिस की मिली-भगत और सरकारी संरक्षण में काफी दिनों से जारी थी..
२००३ में अशोक कामगार यूनियन के दबाव में बिहार सरकार ने जांच का आदेश दिया और
गोधा लाकआउट घोषित करके गायब हो गया. २००३ में ही कर्मचारी बीमानिधि ने कर्मचारियों
की बीमा-निधि न जमा करने के लिये मिल को सील कर दिया था. बेगूसराय श्रम न्यायलय ने
तालाबंदी को गैर-कानूनी घोषित कर दिया. ८ साल भगोड़ा रहने के बाद बिहार में नीतिश
कुमार के नेतृत्व में राजग सरकार के सत्ता में आते ही दुबारा अवतरित हुआ और मिल
लूटने के कार्यक्रम में तेजी ला दी. मिल की ६५० हार्सपावर का मोटर, रेल-पटरी,
बिजली के केबल, अन्य कल पुर्जों के अलावा अशोक पेपर मिल परिसर से शीसम के २५०० से
अधिक पेड़ काटकर उसकी बेशकीमती लकड़ी बेच डाला. इतना ही नहीं मिल के कचड़े के बागमती में
निकासी के लिये लगी निकासी पाइप भी खोदकर बेच डाला. मिल की संपत्ति की चोरी के
निरंतर विरोध की परिणति १० नवंबर की गोलीबारी और ह्त्या में हुई.
मिल की संपत्ति
लूटने के गोधा के पक्के इरादे और मजदूरों के विरोध के मद्देनज़र मिल में २ महीने
से तनाव का माहौल था. ४ विशेष दंडाधिकारी नियुक्त थे. मजदूरों की शिकायत पर ८
नवंबर को दरभंगा जिलाधीश ने मिल का मुआयना किया और अपनी रिपोर्ट में बहुत सी
मशीनरी गायब होने का उल्लेख किया तो गोधा ने उनपर घूस माँगने का आरोप लगा दिया. ७
और ८ नवम्बर को गोधा और उसके गुर्गे पुराने पेपर बेचने के लिये ले जाने के नाम पर
मिल में ५ ट्रकों के साथ आये. मज्रदूरों की तरफ से निगरानी पर तैनात लोगों ने
ट्रकों की जांच का आग्रह किया तो अशोक पेपर मिल के थानाध्यक्ष ने ७-८ लोगों को पकड़
कर परगनाधीश और तत्पश्चात पुलिस उप-कप्तान के पास ले गए जिसने उन्हें धमका कर काफी
देर रोके रखा, इस बीच गोधा के ट्रक चोरी का माल लेकर चम्पत हो गए. इसके बाद से
मजदूर गाँव वाले ज्यादा चौकस हो गए.
गोधा ने वही नाटक
१० नवंबर २०१२ को पुनार्मंचित करने के प्रयास में ४ ट्रक लेकर आया और उसमें
कल-पुर्जों के कबाड़े; बिजली के केबल और रेल पटरियां तथा मशीनों के पीतल लादकर भागने
के चक्कर में था. निगरानी करते मजदूरों को अपने सुरक्षा कर्मियों और पुलिस की
उपस्थिति में जान से मारने की धमकी दी. जब ट्रक जाने लगे मजदूर तलाशी की ,मांग पर
अड गए. गोधा ने गोली चलाने की धमकी दी और पुलिस और उसके सुरक्षा कर्मियों ने गोली
चलाना शुरू कर दिया और सूशील शाह की ह्त्या कर दी और जयकुमार तथा दुक्खी यादव (५५
वर्ष) को घायल कर दिया. दरभंगा की एसएसपी गरिमा मालिक को नहीं मालुम कि किसने गोलीबारी
का आदेश दिया. गौरतलब है कि गरिमा मालिक जब फारबिसगंज की एसएसपी थी तो वहाँ भी
कारपोरेटी मुनाफे के लिये जमीन अधिग्रहण के विरोध आंदोलन पर पुलिस गोलीबारी में एक
किसान मारा गया था.
हमारी मांगें:
·
गोधा, गोलीबारी करने वाले उसके सुरक्षा कर्मियों एवं
पुलिस कर्मियों पर ह्त्या का मुकदमा;
·
सारे नियम क़ानून ताख पर रख कर मिल की संपत्ति की चोरी और
गोलीबारी की घटना की बिहार उच्च न्यायालय के न्याधीश द्वारा न्यायिक जांच;
·
एक युवा जीवन की क्षतिपूर्ति नहीं हो सकती फिर भी चूंकि
सुशील परिवार का भरण-पोषण करने वाला इकलौता सदस्य था उसके परिजनों और घायलों को
समुचित क्षतिपूर्ति;
·
कर्मचारियों के सारे बकाए का भुगतान और श्रम न्यायालय
एवं कमचारी भविष्यनिधि कोष के फैसलों को लागू करना;
·
धर्म गोधा द्वारा मिल की संपत्ति की लूट और सर्वोच्च
न्यायालय की धज्जियां उड़ाते हुए अशोक पेपर कामगार यूनियन के अध्यक्ष, पूर्व विधायक
उमाधर सिंह को मानीटरिंग कमेटी से हटाने की सीबीआई जांच;
·
निजीकरण के जरिये मिल के पुनरुद्धार की विसंगतियों को
देखते हुए मिल का बिहार या केन्द्र सरकार द्वारा अधिग्रहण;
·
गोधा द्वारा लगातार सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों के
उल्लघन और उसे रोकने वाले मजदूरों पर गोलीबारी के लिये बिहार सरकार से स्पष्टीकरण;
·
बिहार और केन्द्र सरकारों द्वारा मिल से चोरी सामानों की
पुनर्स्थापना सुनिश्चित करना और चोरी एवं पेड़ काटने के लिये गोधा पर मुकदमा और उससे
भरपाई वसूलना सुनिश्चित करना. .
एन.भट्टाचार्य
ईश मिश्र
सचिन कबीर
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