महामाहिम के शाहबजादे को पैगाम
जिसे समझ रहे हो फैशन
तुम, महामहिम के शाहबजादे, बेअदब
दस्तक दे रही है शाही दुर्ग के द्वार पर
बन उमडती युवा उमंगों का जनसैलाब
धधक रहे हैं हैं युवा दिलों में जो आग के गोले
न बुझ सकेंगे, एक दिन बनेंगे क्रान्ति के शोले
पड़ेगीजब घी इन्किलाबी चेतना की इस आग में
मिला देगी शहंशाही को तारीख की खाक में
बसाएगी कि उस पर एक ऐसी बस्ती
नहीं होगी जिसमें किसी शहंशाही की हस्ती
नहीं करने देगा अपने नाम पर अत्याचार अब आवाम
खेती-बाडी के साथ ही सम्हालेगा राजपाट का भी काम.
ईमि/०२.०१.१३
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