Saturday, December 22, 2012

बलात्कार

आज टेलीविजन पर इंडिया गेट पर कर्फ्यू तोडते युवक-युवतियों क्र हुजूम को देखकर अच्छा तो लगा लेकिन इस असंगठित, अनियंत्रित भीड़ के मर्दवाद के विरुद्ध कारगर आंदोलन में तबदीली में संदेह है, फिर भी स्वागत योग्य है.सामूहिक  बलात्कार जैसी हैवानी मर्दानगी पर एक बहस तो चली. गाहे-बगाहे इस तरह के उन्मादी विरोध प्रदर्शन भी बेकार नहीं जाते, कभी कभी उनके अनचाहे परिणाम ज्यादा महत्वपूर्ण होते हैं. ऐसा ही उन्मादी विरोध-प्रदर्शन मणडल-विरोधी अभियान में दिखा था और टांय-टांय फिस्स हो चुके अन्ना आंदोलन में भी. ये स्वस्फूर्त भागीदारियां युवाओं के शिक्षण मंच का  भी काम करती हैं. और आपराधिक तटस्थता से बेहतर है ज़ुल्म की इम्तिहान पर ही सही विचलित होना. जरूरत इसे मर्दवादी विचारधारा के विरुद्ध एक योजनाबद्ध अभियान का रूप देने की. आप सेलिब्रिटीज की प्रतिक्रियाएं देखिये. शर्मीला सालों से भूख हरताल कर रही है एक ऐसे काले क़ानून के खिलाफ जिसके तहत सेना किसी को मार साक्ती और गिरफ्तार कर सकती है. १२ साल पहले सेना के जवान मणिपुर में मनोरमा नाम की एक लड़की को उठा ले गए, सामूहिक बलात्कार के बाद उसके जननांगों में गोली मारकर ह्त्या कर दी. इस मामले में दोषियों को सजा दिलाने के बजाय सरार दोषियों को बचाने की कोशिस कर रही है जिनका अपराध इन अपढ़ लम्पट, हैवानों से अधिक हो जाता है क्योंकि वे पढ़े-लिखे और सैन्य अकेडमी में नैतिकता और देश-भक्ति में प्रशिक्षित सैनिक जिस मनोरमा के जननांग में  गोली मारते हैं, उसी के पैसे से उनकी वर्दी और बन्दूक खरीदी जाती हैं. कश्मीर शोपियाँ में ननद-भावज दो युवतियां अपने सेब के बागान में जाती हैं और अगले दिन उनकी बलात्कृत लाशें पुलिस, सीआरएफ, सेना तीनों के शिविरों के बीच एक नाले में पायी गयी. पुलिस ने कहा "घुटने से भी नीची गहराई वाले) नाले में डूब ब्गायीं! सरकार अपराधी कोया बचा रही है. सुषमा स्वराज को इस बहादुर लड़की की हिम्मत की तारीफ़ करने की बजाय इसे "ज़िंदा लाश" बताना ज्यादा नारीवादी सहानुभति दिखती है. वे अपनी पार्टी के छत्तीसगढ़ सरकार को सोनी सोरी जैसी आदिवासी शिक्षिका और उस जैसी कितनी लाशों को नजर-ए-ज़िन्दाँ करने से क्यों नहीं रोकतीं? यह जनमानस क्यों नहीं उद्वेलित होता जब सोनी के जननांगों में पत्थर ठूंसने वाले पुलिस अधिकारी अंकित गर्ग को गणतंत्र दिवस पर पुरस्कृत किया जाता है? क्यों लड़की के बारे में "पहचान छिपाने के लिये बदला नाम" प्रक्षेपण के साथ लिखा जाता है?हैवानियत के अपराधियों की बाजे बलात्कृत लड़की को क्यों "कलंकित" मना जाता है? क्यों समाज सोचता है कि बलत्कृत (या सामाजिक वर्जानाओं के विरुद्ध स्वेच्छा से सहवास करने वाली भी) लड़की का सबकुछ नष्ट हो गया? क्या लड़की का सब कुछ टांगों के बीच ही होता है, भेजे और भुजाओं में कुछ नहीं? क्यों महिलाओं की यौन-क्रिया में भागीदारी को गाली माना जाता है? मर्दवादी लिंग-भेदभाव कोई जीववैज्ञानिक प्रवृत्ति नहीं है बल्कि विचार धारा है जिन्हें हम अपने रोज-मर्रा के जीवन में निर्मित और पुनर्निर्मित करते हैं. लड़ाई अंततः इस विचारधारा के विरुद्ध है जो मर्दानगी की बलात्कारी मानसिकता की जननी है.  

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