तरजीह नहीं मिलती दान में या दुकान पर
कमाई जाती है कर्मों से इज्ज़त की तरह
हुनर है जो गढ़कर शब्द गज़ल रचने की
घी से इसकी धधका दो आग युवा आक्रोष की
बन जाए यह आग ऐसा भीषण दावानल
बुझा न सकें जिसको तोप-टैंकों के दमकल
बना दो गज़ल को एक ऐसा विप्लवी नारा
दहल जाए जालिमों का संसार सारा का सारा
गजल हो हमारी हरकारा इन्किलाब की
महरूमों-ओ-मजलूमों के सिसकते ख़्वाब की
मेरी गज़ल तो गज़ल नहीं एक नारा है
इन्किलाबी जज्बातों की एक अदना हरकारा है.[ईमि/२७.१२.१२]
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