ईश मिश्र
मां तुम्हारी ज़िंदगी इतनी त्यागमय थी
कष्टकारी मौत इतनी जल्दी क्यों?
कष्टकारी मौत इतनी जल्दी क्यों?
देखता था बचपन में तुम्हारी तकलीफें
बड़ा होकर दूर करने की रखता था उम्मीदें
मैं होने लगा बड़ा तुम्हारी सीख के साथ
तुमने सिखाया अच्छा इंसान बनो
और इसके लिए जरूरी है समझदार बनो
बनने के लिए समझदार जरूरी है
बनने के लिए समझदार जरूरी है
करो हर बात पर बेख़ौफ़ सवाल
डरों मत किसी से
न भूत से न भगवान से
न भूत से न भगवान से
मैं बड़ा होने लगा
समाज के क़ानून पर सवाल करने लगा
लोगो ने कहा मैं रहा था रास्ते से भटक
मैं चलता रहा लेकिन तुम्हारी सीख पर बेखटक
मैं चलता रहा लेकिन तुम्हारी सीख पर बेखटक
मैं बड़ा होता गया बचपन खोता गया मगर
करता गया सवाल हर बात पर
अपने धर्म-कर्म-विरासत पर
अपने धर्म-कर्म-विरासत पर
भूत और भगवान के वजूद पर
इतने सवाल लोगों को नागवार लगे
सारे मठाधीश करने पलटवार लगे
चेले भी उनके होने लगे नाराज़
चेले भी उनके होने लगे नाराज़
नाराज़ हुए सारे भगवान और भूतराज
सबने मेरे पागल होने का ऐलान कर दिया
मैंने तेज सवालों का अभियान कर दिया
मैं करता रहा बेख़ौफ़ सवाल
झेलता रहा सारे बवाल
मैंने तेज सवालों का अभियान कर दिया
मैं करता रहा बेख़ौफ़ सवाल
झेलता रहा सारे बवाल
मैं बड़ा होता गया करते हुए सवाल
हुए नहीं कम तेरी ज़िंदगी के जंजाल
काश मिल जाती तुम फिर एक बार
काश मिल जाती तुम फिर एक बार
दूर कर देता कष्ट तुम्हारे इस बार
मां भी मिलती है एक ही बार जीवन की तरह
तुम एक महान मां थी हर मां की तरह
लेकिन एक विराट-ह्रदय इंसान भी थी
विरले इंसानों के तरह
[31.03.2005]
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