Monday, December 24, 2012

दोजख कैसा होगा वाइज़ ही जाने

दोजख कैसा होगा वाइज़ ही जाने

शर्म आती है मनुष्य की दरिंदगी की ख़बरों से
हटती ही नहीं ये ख़बरें मगर कभी नज़रों से 

लगता है हम शर्मिस्तान में रहते हैं
हर रोज कई शर्मनाक ख़बरें सहते हैं.

दोजख कैसा होगा वाइज़ ही जाने
खुदा की इस दुनिया से बुरा क्या होगा?
         [ईमि/२५.१२.'१२ ]

1 comment:

  1. बहुत अच्छा. कविता का सौंदर्यशास्त्र ले गए... हा हा
    आपकी जिस गज़क को मैंने सुपर लाइक किया है बहुत अच्छी है,

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