Sunday, November 1, 2020

फ्रांस में कट्टरवादी हमला

 जो लोग फ्रांस के राष्ट्रपति के विरुद्ध सड़कों पर उतर रहे हैं क्या वे एक धर्मांध द्वारा एक शिक्षक का सिर कलम करने के खिलाफ सड़क पर उतरे थे? या दूसरे धर्मांध द्वारा चर्च में 3 निर्दोषों की हत्या के विरुद्ध? या कुछ साल पहले किसी पैगंबर का कार्टून छापने वाली पत्रिका के दफ्तर पर कोहराम मचाकर कई निर्दोषों के हत्यारों के विरुद्ध? वह कौन सी अफीम है जिसके नशे में इंसान नर से नरपिशाच बन जाता है? आतंकवादी हिंसक तांडव से सरकारें नहीं डरती, आमजन डरता है, सरकारों को तो आमजन पर शिकंजा कसने का बहाना मिल जाता है। मूल (आर्थिक) मुद्दों जन-असंतोष का सामना कर रही मैक्रोन सरकार को आतंकवाद से लड़ने के लिए जनसमर्थन मिल गया जो वक्त की जरूरत है।


दूसरी बात फ्रांस में इस्लामी धर्मांधों के जघन्य कुकृत्यों पर हाय तौबा मचाने वाले क्या हिंदू अंधविश्वास-धर्मांधताओं की आलोचना के लिए मातम मनाए थे या उत्सव मना रहे थे? क्या वे तार्किकता का अभियान चलाने के लिए तर्कवादी विद्वान नरेंद्र डाभोलकर की हत्या पर आंसू बहाए थे या हत्यारे नरपिशाचों के पक्ष में कुतर्क गढ़ रहे थे? क्या वे राजनैतिक धर्मोंमाद और जातिवादी अमानवीयता के विरुद्ध कलम चलाने वाली गौरी लंकेश के मातम में शामिल हुए थे या उन्हें कुतिया कह कर उनकी हत्या का जश्न मनाने में शामिल थे?

दोस्तों कलम और किताब से बौखलाकर हिंसक तांडव मचाने वाले हर तरह के धर्मांध और धर्माोंमादी नरपिशाचों की एक ही प्रजाति है, गौरी लंकेश के हत्यारों की पक्षधरता आपको फ्रांसीसी शिक्षक के हत्यारे के समर्थकों की जमात में खड़ी कर देती है। बल्लभगढ़ की लड़की की हत्या का विरोध करना है तो हाथरस की लड़की के हत्या-बलात्कार के आरोपियों का प्रत्यक्ष-परोक्ष समर्थन बंद कर उनके विरुद्ध खड़ा होना पड़ेगा। हर किस्म के धर्मांध और कट्टरपंथी मानवता के समान रूप से दुश्मन एक दूसरे के पूरक तथा सहोदर हैं। कट्टरपंथ और धर्मांधता का विरोध समग्रता में करना पड़ेगा तभी मानवता को बचाया जा सकेगा। विभिन्न प्रकार के नरपिशाचों में मात्रात्मक फर्क हो सकता है, उनमें कोई गुणात्मक फर्क नहीं है।

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