Monday, November 2, 2020

बेतरतीब 91 (इलाहाबाद के संस्मरण)

 आपके संस्मरण पढ़कर मैं इलाहाबाद की अपनी पिछली यात्राओं के संस्मरण अपने ब्लॉग में ढूंढ़ने लगा, मिले नहीं। इवि फेसबुक ग्रुपों से तो यही लगता है कि अंधभक्त तैयार करने का कारखाना बन गया है, लेकिन कुछ यात्राओं के अनुभव उत्साह वर्धक रहे। पिछली बार 2017 नवंबर में मजदूर किसान सभा के तत्वाधान में एजीऑफिस चौराहे पर पर पोस्टऑफिस के हल में रूसी क्रांति की शताब्दी समारोह के एक कार्यक्रम में गया था। बहुत अच्छा कार्यक्रम हुआ था, वहीं पास में महात्मा गांधी हिंदी विवि के गेस्ट हाउस में रुका था, अगले दिन विशिवविद्यालय गया प्रो. हेरंब चतुर्वेदी जी ने जी ने इतिहास के छात्रों के साथ historiography पर एक लंबे क्लास का सुखद सुअवसर प्रदान किया। आर्ट्स फैकल्टी का आपने बिल्कुल सचित्र-सजीव वर्णन किया है। उसके पहले 2012 से 2016 तक सालाना 1-2 यात्राओं का संयोग बनता रहा था। 2012 में युवासंवाद नामक एक ग्रुप ने सीनेट हाल में युवा चेतना पर एक गोष्ठी में आमंत्रित किया। युग चेतना और युवा चेतना पर मेरी स्वस्पूर्त प्रस्तुति लोगों खासकर छात्रों को बहुत पसंद आयी और अगले दिन छात्रसंघ भवन पर उनमें से कुछ छात्रों ने मार्क्सवाद पर एक क्लास का आग्रह किया जिन्हें मैंने 3 बजे गेस्ट हाउस आमंत्रित किया। दिन में अपने इलाहाबाद विवि के एकमात्र पसंदीदी शिक्षक प्रो. बनवारी लाल शर्मा से मिलने प्रयाग विद्यापीठ गया 2-3 घंटे सुखद वार्तालाप हुआ और अगली मुलाकात के वायदे के साथ वहां से निकले लेकिन वह मुलाकात कभी नहीं हुई। गुरुलर पानी के कॉरपोरेटीकरण के खतरे से काफी चिंतित थे।गेस्ट हाउस में बच्चों के साथ 3 बजे से 7 बजे तक बहुत सुखद वैचारिक आदान-प्रदान हुआ और केके रॉय के घर होते हुए प्रयागराज पकड़ने के लिए हम दिल अभी भरा नहीं अंदाज में विदा हुए। एक लड़का मोटर साइकिल से अशोक नगर के पास केके के घर तक छोड़ने आया। वहां से आते वक्त मन में उन शिक्षकों पर तरस आ रहा था जो कहते रहते हैं कि बच्चे क्लास ही नहीं करना चाहते। थोड़े ही दिनों बाद (अगस्त, 2012) यूनियन हाल में सीमा आजाद के गिरफ्तारी के खिलाफ दमन विरोधी सम्मेलन में जाना हुआ। जिसका संस्मरण नीचे कमेंट बॉक्स में शेयर कर रहा हूं। उस यात्रा में अगले दिन एक छात्र-मित्र के साथ पानी की टंकी के कटरा चौराहे पर गया लल्लू के ठेले की चाय की दुकान उसका बेटा चला रहा था तथा प्रेम की सिगरेट पान की दुकान उसका बेटा। रासके में एक फेसबुक मित्र रानिश जैन से मुलाकात हुई। जीएन झा, पीसीबी, एसएसएल हॉस्टलों में गया तो हालत देख बहुत कष्ट हुआ मेस चलते नहीं बरामदों में गैस और मेजों पर बर्तन दिखे। नेतराम में पूड़ी खाकर वापस गेस्ट हाउस आ गया और यूनियन दफ्तर के सामने स्टडी क्लास के लिए निकल पड़ा। इवि में विज्ञान का विद्यार्थी रहा किसी संयोग से एबीवीपी का नेता बन गया जिसके बारे में कभी लिखूंंगा। 2 साल बाद मार्क्सवादी साहित्य के संपर्क से उससे बाहर निकला और एक प्रगतिशील सांस्कृतिक समूह, युवामंच से जुड़ा और तब तक आपातकाल लग गया। 1976 में भूमिगत रिहाइश की तलाश में दिल्ली आ गया सुखद संयोग से जेएन यू पहुंच गया और कैंपस संस्कृति में फर्क से सुखद कल्चरल शॉक लगा और मैं जेएनयूआइट हो गया। जैसा भी बना उसमें जेएनयू का योगदान ज्यादा है।

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