Friday, November 6, 2020

लल्ला पुराण 367 (ब्लॉक)

 

मैंने इस विषय पर पहले ही पोस्ट डाला है कि मेरी ब्लॉक लिस्ट में कुछ चुंगी सदस्य भी हैं, वैचारिक मतभेदों का तो मैं हार्दिक स्वागत करता हूं क्योंकि न तो कोई अंतिम ज्ञान होता है, न अंतिम सत्य. मतभेदों के स्वस्थ तरीके से चकराव से ही सापेक्ष सत्य निकलता है। गांधी के सत्याग्रह का आदर्श रूप में यही मतलब है। सेसल मीडिया के मंचों का भी यही मकसद होना चाहिए। मैंअसभ्य, अमर्यादित भाषा में निराधार निजी आक्षेप करने वालों को ही इसलिए ब्लॉक करता हूं कि पैंसठियाने (65 साल पार करने) के बावजूद दिल के आहत होने और आवेश में आने जैसी निजी, मानवीय दुर्बलताओं पर पूर्ण विजय नहीं प्राप्त कर सका हूं और अपमानजनक निजी आक्षेप पर आवेश में आकर कभी कभी भूल जाता हूं कि 45 साल पहले 20 साल का हूं और उन्हीं की भाषा में जवाब देने का मन होता है। ऐसा करने से अपनी भाषा भ्रष्ट होने का खतरा रहता है। ऐसा न करने के लिए इस तरह के लोगों से संवाद व्यर्थ समझ उनसे दूर हो जाता हूं। मानता हूं कि यह एक शिक्षक के रूप में मेरी असफलता है। एक आदर्श शिक्षक को चाहिए कि सावित्री बाई फुले की तरह सारे अपमान-अवमानना सहते हुए लोगों को अपनी सही बात समझाने पर अड़े रहना चाहिए। मैं बदलाव के सिद्धांत में यकीन करता हूं और शीघ्र ही अनब्लॉक कर देता हूं। दूसरी बार अनब्लॉक करने में डरता हूं। 4-5 साल पहले एक इलाहाबाद हाईकोर्ट के वकील को अनब्लॉक किया और वे वायस कॉल कर मां-बहन की गालियों के साथ मिलने पर हाथ पैर तोड़ने की धमकी देने लगे। गुंडे-मवालियों से मैं डरता नहीं, लेकिन जब रास्ता है तो उनके चक्कर में पड़े ही क्यों? तभी पहली बार पता चला फेसबुक पर फोन भी हो सकता है। रही बात मॉडरेटर की तो मेरी प्रशासनिक कामों में कोई रुचि कभी नहीं रही, लेकिन 3 साल के हॉस्टल के अनुभव के बाद लगा कि शिक्षक एक अच्छा प्रशासक हो सकता है। मैं इस ग्रुप के लोगों को एक बार फिर खोज-खोज कर अनब्लॉक करूंगा लेकिन ऊपर शिकायत करने वाले सज्जन की शिकायती भाषा ही आपत्तिजनक है।

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