नतमस्तक समाज में सिर झुका कर ही सलाम का रिवाज है
किसी का सर उठाकर चलना नाकाबिले बर्दाश्त है
अतिविनम्रता में लोग चरणस्पर्श और शाष्टांग करते हैं
हम तो रवायतों की मुखालफत का मंहगा शौक पालते हैं
समझबूझ कर ही उठाते हैं खतरा रवायतों के मुखालफत का
कलम कुंद करना ही होता है रिवाज नतमस्तक समाज का
करते हैं इंकार हवा को पीठ देने से समझते हैं उसका रुख
उठाते हैं मौजों की विपरीत दिशा में कश्ती चलाने का सुख
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