व्यंग्यविधा को विकृत करने वाले, लूट का माल औरों में बांटकर सोने की चेन खुद लेकर पहनने वाले बहुत ही ओछी सोच के हैं आपलोग। पहली बात तो पतला आदमी थोड़ी सी जगह में सिमटकर बैठ लेगा या अपना बोझ ढोने में थके बेचारे मोटे को फैलकर बैठने देगा और खुद खड़े होकर यात्रा का आनंद उठाएगा। दूसरी मोटा पतले को पीट ही नहीं सकता क्योकि ताकत वजन से नहीं साहस से आती है। तीसरी बात डफली बजाकर क्रांतिकारी गीतों के साथ प्रदर्शन करने वाले नव जवान पढ़े-लिखे विवेकशील इंसान होते हैं वे व्यवस्था के अन्याय के विरुद्ध संघर्ष करते हैं, बजरंगी धर्मोंमादियों की गोहत्या तरह अफवाह पर मॉबलिंचिंग नहीं करते। वे समानता दूसरों के इस्तेमाल की चीजें छीनकर नहीं, उत्पादन के साधनों पर निजी की बजाय सामाजिक स्वामित्व की स्थापना से लाना चाहते हैं। व्यंग्य लेखन बहुत उपयोगी और मुश्किल विधा है। हरिशंकर परसाई और श्रीलाल शुक्ल तथा इबने इंसां को विनम्र नमन। चैनलों का चित्रण समुचित किया गया है। बाकी जपनाम।
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