मैंने हामिद अंसारी का पूरा भाषण पढ़ा और उसमें कुछ भी आपत्तिजनक नहीं है, उन्होंने राष्ट्रवाद की नहीं, धर्मोंमादी विकृत राष्ट्रवाद की आलोचना की है जिसके परिणाम स्वरूप देश का विभाजन हुआ और जिसके घाव नासूर बन सांप्रदायिक नफरत के रूप में अब तक रिस रहे हैं। फासीवाद और नाजीवाद के रूप में जिस राष्ट्रोंमाद ने मानवता के इतिहास को सदा के लिए कलंकित कर दिया है। रवींद्रनाथ टैगोर अंग्रेजों के चाटुकार नहीं थे, अंग्रेजों के चाटुकार उपनिवेश-विरोधी नागरिक राष्ट्रवाद को धार्मिक राष्ट्रवाद के नाम पर उपनिवेश विरोधी आंदोलन को कमजोर करने वाली दोनों समुदायों की सांप्रदायित ताकतें थीं। हामिद अंसारी ने यही कहा है कि पिछले 4 सालों में नागरिक राष्ट्रवाद विकृत होकर कट्टरपंथी राष्ट्रोंमाद बन गया है। इसी राष्ट्रोंमाद की आड़ में, जैसा कि मुसोलिनी की इटली और हिटलर की जर्मनी में हुआ था राज्य को कॉरपोरेटी सेवा का टूल बनाया जा रहा है। रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर-डिप्टी गवर्नर समेत अर्थशास्त्रियों की राय को दरकिनार कर बैंकिंग सेक्टर में कॉरपोरेटों को लाइसेंस देने की नीति बनाई जा रही है। रेल-हवाई अड्डों समेत सारे सार्वजनिक उपक्रम धनपशुओं के हवाले किए जा रहे हैं, संसद में बहुमत के जरिए स्वास्थ्य, शिक्षा और खेती का पूर्ण कॉरपोरेटीकरण किया जा रहा है जिसके विरुद्ध देशभर के किसान और छात्र आंदोलित हैं। महामारी का फायदा उठाकर देश पर जनविरोधी आर्थिक नीतियां लागू की जा रही हैं। राष्ट्रविरोधी हामिद अंसारी नहीं, धर्मोंमादी राष्टोंमाद की भावनाएं उछालकर मुल्क के आमजन को तबाह करने वाली नीतियों के समर्थक हैं। रवींद्रनाथ टैगोर, टॉलस्टॉय या आइंस्टाइन राष्ट्रवाद को नहीं इस तरह के राष्टोंमाद को बुराई मानते थे जिसे लगभग 300 पहले एंडर्सन ने हरामखोरों की शरणस्थली बताया था। एंडर्सन, टैगोर, टॉलस्टॉय, आइंस्टाइन के विचार ऑनलाइन उपलब्ध हैं। नफरत पर आधारित धर्मोंमादी राष्ट्रवाद संविधान आधारित वास्तविक, नागरिक राष्ट्रवाद का विकृत रूप है।
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