स्त्रियों की ही तरह बुजुर्गों का भी सेक्स के बारे में बात करना अच्छा नहीं माना जाता। लेकिन जब से (15-16 साल की उम्र से), एक लड़की दोस्त की पहल पर सेक्स के बारे में अनुभवजन्य जानकारी के चलते, सेक्सुअल्टी की मर्दवादी (जेंडर्ड) समझ की जगह जनतांत्रित समझ की प्रक्रिया की शुरुआत से ही आश्चर्य होने लगा था कि सेक्स जैसी सामान्य (नॉर्मल) और आपसी (मुचुअल) इच्छा तथा जरूरत को रहस्यमयी बनाकर इतना हव्वा क्यों खड़ा किया जाता है? किसी ने किसी के साथ आपसी मर्जी से सेक्स कर लिया तो कौन सी आफत आ गयी? दरअसल समाज की मर्दवादी संरचना के औचित्य के लिए सेक्स जैसी सामान्य बाद को सहस्यमयी बनाकर उसके इर्द-गिर्द वर्जनाओं और प्रतिबंधों का जाल बुना गया जिससे फिमेल सेक्सुअल्टी पर नियंत्रण के जरिए उसके व्यक्तित्व (फिमेल पर्सनल्टी) को नियंत्रित किया जा सके। मर्दवाद (जेंडर)कोई जीववैज्ञानिक प्रवृत्ति नहीं है, न ही कोई साश्वत विचार है बल्ति एक विचारधारा (मिथ्या चेतना) है, जिसे नित्यप्रति की जीवनचर्या, विमर्श एवं रीति-रिवाजों के द्वारा निर्मित और पोषित किया जाता है। एक विचारधारा के रूप में स्त्रीवाद मर्दवादी मान्यताओं का निषेध है।
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