Wednesday, November 4, 2020

पाकिस्तान

 किसी ने लिखा कि मुनव्वर राणा जैसे लोगों ने पाकिस्तान बनवाया। उस पर:


मैंने इस पर 1991-92 में ज्ञान पांडे की पुस्तक "Construction of Communalism in Colonial North India" के छोटे-बड़े समीक्षात्मक लेख हिंदी में क्रमशः जनसत्ता और तीसरी दुनिया तथा अंग्रेजी में क्रमशः Pioneer & Social Science Probing के लिए लिखे थे। कैंपस छोड़ने के पहले टाइप कराया था खोजकर शेयर करूंगा। भारत में सांप्रदायिकता औपनिवेशिक पूंजी की खोख से निकली आधुनिक विचारधारा है तथा भारतीय समाज और देश बांटने की परियोजना औपनिवेशिक शासन की है जिसकी शुरुआत 1857 से हो गयी थी जब विद्रोही सैनिकों की मदद से संगठित, सशस्त्र किसान क्रांति ने ब्रिटिश हुकूमत की चूलें हिला दी थीं और यदि भारत के सामंती शासक वर्गों का बड़ा हिस्सा किसान क्रांति के विरुद्ध अपने सैन्यबल के साथ औपनिवेशिक लुटेरों का साथ न देता तो इतिहास अलग होता। देशद्रोही दलाल देसी सामंती शासकों की मदद से क्रांति कुचलने और क्रांतिकारियों को खुली फांसी से आतंक फैलाने के बाद दोनों ही समुदायों के अपने दलालों की मदद से सांप्रदायिकता का निर्माण कर समाज को बांटो और राज करो की नीति अपनाय जिसकी परिणति औपनिवेशिक शासन के अंत के साथ अभूतपूर्व रक्तपात बीच देश और दिलों के बंटवारे में हुई। बंटवारे के घाव सांप्रदायिक नफरत के रूप में अभी भी नासूर बन रिस रहे हैं और समाज के दिल को छलनी कर रहे हैं। इसके लिए मुनव्वर राणा के ही वैचारिक पूर्वज अकेले जिम्मेदार नहीं हैं, उतने ही जिम्मेदार मोदी-योगी तथा कांग्रेसी हिंदुत्ववादियों के वैचारिक पूर्वज भी हैं।

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