Sunday, November 15, 2020

शिक्षा और ज्ञान 298 (निजीकरण)

 इन्फोसिस ने कहा कि भारतीय विश्वविद्यालयोंसे निकले विद्यार्थी बेकार होते हैं, इसलिए वह अपना विश्वविद्यालय खोलेगा। क्या बात है सारे पूंजीपति, ज्ञान की दुकानें खोलकर लोगों को ज्ञानी बनाना चाहते हैं जिससे वे गरीबी असमानता तथा पिछड़ेपन के मूल की समझ हासिल कर मुल्क को बेहतर बना सकें? दर-असल स्वास्थ्य और शिक्षा अतिरिक्त पूंजी निवेश के सुरक्षित और अतिशय लाभप्रद क्षेत्र हैं। 5 हजार का इंजेक्सन निजी अस्पताल 40 हजार में लगाते हैं। 125 रुपया सालाना फीस की पढ़ाई 1250,000 में होगी। 1995 में विश्वबैंक द्वारा शिक्षा और खेती को व्यापारिक सेवा तथा सामग्री संविदा (गैट्स) में शामिल करने के बाद उसकी वाफादार सरकारें शिक्षा के निजीकरण और व्यापारीकरण की मुहिम में जी-जान से लगकर लोगों को 'आत्मनिर्भर' बनाने में जुटी हैं। इन्फोसिस की मुहिम साम्राज्यवादी भूमंडलीय पूंजी द्वारा विश्वविद्यालय को ज्ञान के केंद्र से कारीगर-प्रशिक्षण की दुकानें बनाने की साजिश का हिस्सा है। इनफोसिस वालों से पूछिए फीस कितनी लेंगे? हरखू की बिटिया कहां पढ़ेगी? हमारे विश्वविद्यालयों से पढ़कर विदेशों में जाकर ही हरगोविंद खुराना और अभिजीत बनर्जी क्यों बनते हैं? यहां लोगों को परजीवी अरबपति नहीं दिखते मास्टरों का आराम से खाने-पीने भर का वेतन खलने लगता है? घर चलाने भर का वेतन मिलेगा तभी वह शोध कर-करवा सकेगा, छात्रों को पढ़ाने के लिए पढ़ सकेगा। जिस देश का शिक्षक दरिद्र और दयनीय रहेगा वह दरिद्रता और कूपमंडूकता को अभिशप्त रहेगा। 6ठें वेतन आयोग ने बाकी सरकारी कर्मियों की हीनतरह शिक्षकों का वेतन सम्मानजनक बना दिया वरना उन्हें घर चलाने के लिए पूरक आय का काम करना पड़ता था, जिसके लिए जाहिर है समय वह शैक्षणिक उत्तरदायित्व के समय में से ही चुराएगा। 6ठें वेतन आयोग के पहले अधिकतम 4-5% शिक्षकों के पास कारें होती थीं। अब भी उनके पास मारुति और एमआईजी फ्लैट ही हैं, बीएमडब्लू और कोठी नहीं। विश्वविद्यालय की गुणवत्ता और व्यवस्था में परिवर्तन की जरूरत तो है लेकिन जैसा कि अंग्रजी की सटीक कहावत है, टब के गंदे पानी के साथ बच्चे को नहीं फेंक देना चाहिए बल्कि टब का पानी बदल देना चाहिए। सुधार के तरीकों में सबसे जरूरी है, नियुक्तियों में मठाधीशी खत्म कर पारदर्शिता लाने की, जो सरकारें आसानी से कर सकते हैं, यदि राजनैतिक इच्छा हो तो, वरना सभी प्रतिस्पर्धी नौकरियों से खारिज होने के बाद लोग जुगाड़ (गॉडफादरी कृपा) से शिक्षक बन जाते हैं।

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