आइंस्टाइन ने कहा है ईश्वर की उत्पत्ति भय से हुई है। यहां के ही नहीं सब जगहों के संदर्भों में, ईश्वर की उत्पत्ति में प्रश्नाकुलता तथा विस्मय की भूमिका तो रही ही है, उनमें भय और अनभिज्ञता भी शामिल रही हैं। आज भी आस्था के पीछे उहलौकिक कृपा और भय की भावना ही प्रबल है। वैदिक देवता वे प्राकृतिक शक्तियां थीं जिनका जीवन में विस्मयकारी महत्व था और जिनकी प्रवृत्तियों हमारे वैदिक पूर्वजों की जानकारी से परे थीं। यूनानी प्राचीन समुदायों की भी यही स्थिति थी। उपनिषद काल वैदिक काल के बहुत बाद आता है। यहां ही नहीं हर जगह धार्मिक तथा दार्शनिक परंपराएं साथ साथ चलीं। हमारे तथा यूनानी प्रचीन दर्शनों में आध्यात्मिक तथा नास्तिकता समेत भौतिकवादी परंपराएं भी रही हैं। सारा बौद्ध साहित्य प्रश्नोत्तर स्वरूप में है तथा मूलतः भौतिकवादी है।
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