Saturday, November 21, 2020

ईश्वर विमर्श 97 ( अरब मे बहुदेव वाद)

 इस्लाम के पहले अनेक प्राचीन समुदायों की तरह अरब में भी बहुदेववादी धर्म का प्रचलन था। अपने ही खुदा को परमात्मा मानने वाले इस्लामवादियों से हम पूछते हैं कि 7वीं सदी में इस्लाम से पहले खुदा नहीं था क्या? 2011 में फेसबुक पर धर्मों की उत्पत्ति के इतिहास पर एक कमेंट लिखा गया था जिसे एक लेख के रूप में विकसित कर एक पत्रिका में छापया था, खोजकर शेयर करूंगा। सभी प्राचीन धर्म विस्मयकारी प्राकृतिक शक्तियों के विस्मय की नासमझी के चलते भयाक्रांत श्रद्धा से उत्पन्न हुए जो कालांतर में देश-काल के अनुसार बदले देवी-देवताओं (खुदा-गॉडों) के भय में बदल गए। जिस तरह हमारे देवलोक में हर बात के देवी-देवता होते है उसी तरह प्राचीन मिस्र, अरबी, यूनानी पौराणिक देवलोक में भी हर बात के अलग अलग-देवी देवता होते थे जिन्हें एकेश्वरवादी ईशाई और इस्लाम धर्मों ने प्रतिस्थापित कर दिया। सभी में देवी-देवताओं की प्रार्थना बलि से होती थी। सही कह रहे हैं सूर्य की पूजा (छठ पूजा) प्रचीन काल में सप्तसैंधव वैदिक आर्यों की ही तरह इरान में भी होती थी जो इस्लाम के प्रसार के बावजूद आज भी जारी है। सभी समुदाय अपनी ऐतिहासिक जरूरतों के अनुसार अपने इहलोक की ही आदर्शीकृत छवि में अपने उहलोक का निर्माण करते हैं। मध्ययुग में रोमन कैथोलिक चर्च का देवलोक तत्कालीन यूरोपीय सामंती समाज का ही परिष्कृत अमूर्तन था। हमारा देवलोक वर्णाश्रम समाज का ही परिष्कृत रूप है।

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