Satya Prakash Rajput परिवेश स्वयं नहीं निर्मित होता, निर्मित करना पड़ता है। मनुष्य की चेतना परिवेश (भौतिक परिस्थितियां) का परिणाम है तथा बदली हुई चेतना बदले परिवेश का। न्यूटन के नियम के अनुसार अपने आप कुछ नहीं होता, परिवेश को मनुष्य का चैतन्य प्रयास बदलता है। आज सार्जनिक रूप से छुआ-छूत का समर्थन नहीं कर सकता जो हमारे बचपन में एक सर्वस्वीकृत सच्चाई थी। सामाजिक मूल्य वर्चस्वशाली वर्ग के ही विचार होते हैं। पूंजीवाद माल का ही नहीं विचारों का भी उत्पादन करता है और वही विचार युग चेतना बन जाता है। दलित प्रज्ञा और दावेदारी के अभियान से टूटता ब्राह्मणवाद के विचार अब तक युग चेतना थी, अब अब वह दरक कहा है जिसे बरकरार रखने के लिए ब्राह्मणवादी कर्मकांडों पर जोर दिया जा रहा है।
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बिल्कुल सही कहा आपने।
ReplyDeleteबचपन से अब तक का हमारा अनुभव भी यहीं कहता है।
हम सबका यही अनुभव है, कुछ लोग आत्मावलोकन ही नहीं करना चाहते।
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