मानवाधिकार कार्यकर्ता तथा जनपक्षीय बुद्धिजीवी गौतम नवलखा की नजरबंदी को खत्म करने और पूना की निचली अदालत के रिमांड वारंट के फैसले को निरस्त करने का दिल्ली हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति यस मुरलीधर के विवेकसम्मत फैसले की नजीर पर बाकी चार को भी छूट जाना चाहिए। पंजाब-हरयाणा हाई कोर्ट की राम-रहीम तथा अन्य मामलों में सक्रियता देखते हुए, पीयूसीयल की नेता सुधा भारद्वाज की आजादी की भी जल्द उम्मीद की जा सकती है। लेकिन जज लोया की संदिग्ध हत्या की जांच के मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट का रवैय्या देखते हुए अरुण फरेरा और वरनॉन गोंज़ाल्विस की आजादी की बात उतने भरोसे से नहीं कही जा सकती। गौर तलब है कि गोंज़ाल्विस यूएपीए के ही तहत 2007 में भी गिफ्तार हुए थे। जनकवि वर्वर राव की कविताएं सभी शासकों को तंग करती रही हैं वे आपातकाल की लंबी गिरफ्तारी समेत कई बार गिफ्तार हो चुके हैं लेकिन इंकलाबी कविताओं की धार पैनी ही होती रही। हैदराबाद हाईकोर्ट के बारे में कुछ नहीं कह सकता। संघ परिवार सरकारी नाकामियों को छिपाने के लिए पाकिस्तान और मुसलमान के नारे नाकाफी लग रहे हैं वे अब अर्बन नक्सल नारे से 2019 की वैतरणी पार करना चाहते हैं। संघी इतिहास भूल जाते हैं कि 2014 में सांईबाबा तथा अन्य मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की गिफ्तारी और नक्सलवाद के हव्वे से कांग्रसी भी चुनाव जीतना चाहते थे, परिणाम सब जानते हैं।
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