Friday, October 12, 2018

दिखती नहीं वह आग कहीं भी किसी संशोधनवाद में

दिखती नहीं वह आग कहीं भी किसी संशोधनवाद में
जगा सके जो आवाम को इंकिलाब जिंदाबाद से
गए थे संसद जनांदोलन के लिए ईंधन जुटाने
भूल गए वह बात लग गए झंडा और दुकान सजाने
बनाना था संख्याबल को जनबल वर्गचेतना के प्रसार से
फंस गए मगर जाति-धर्म के चुनावी समीकरण बनाने में
मानकर हाब्सबॉम की बात आईए मार्क्स का पुनर्पाठ करें
मुल्क की नवजवानी के सीने की आग को जिंदा करें
डालकर इंकिलाबी विचारों की घी उसे प्रज्वलित करें
खोजें फासीवाद का जवाब मजदूर-किसान के इंकिलाब में
गूंज जाए हिंदुस्तान इंकिलाबी जय भीम-लालसलाम से।
इंकिलाब जिंदाबाद, जिंदाबाद, जिंदाबाद।

(कुछ प्रवचन टाइप तुकबंदी हो गयी, हा हा। लेकिन प्रवचन की नहीं नजीर से पड़ाने की जरूरत है, फासीवाद से लड़ने के लिए व्यापक वामसंघ की जरूरत है)
(ईमि: 12.10.2018)

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