Tuesday, October 23, 2018

मार्क्सवाद 158 (चरण स्पर्श)

मैं चरणस्पर्श नहीं करने देता लेकिन सोच की आदत छूटना मुश्किल होती है, कोई कर ही ले तो इतना कह कर उठा देता हूम कि बच्चों की जगह पैर में नहीं दिल में होती है। चरणस्पर्श अभिवादन के आदान-प्रदान का ब्राह्मणवादी-सामंती तरीका है। पूर्वजों की लाशों के बोझ के दुःस्वप्न की तरह दिमाग पर सवार परंपरा के बोझ को पूरी तरह उतार फेंकने के लिए, धीरे-धीरे कम करना पड़ेगा। किसी-न-किसी को बिल्ली के गले में घंटी बांधनी ही पड़ेगी। मैं तो कट्टर कर्मकांडी परिवार में पला हूं। उत्सवों में भाग लेता हूं, कर्मकांडों में नहीं। जयमाता दी की तस्वीर के साथ कन्हैया की तस्वीर शेयर करना एक प्रतिक्रांतिकारी काम है।

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