खूसट होने में उम्र की भूमिका नहीं है। आजकल जवान जाहिल-खूसटोॆ की संख्या बुड्ढों से अधिक दिखती है। कई जवानों और थोड़ा कम जवानों की भाषा की तमीज और मध्ययुगीन पोंगापंथी सोच देखकर संदेह होता है कि ये किसी विश्वविद्यालय में पढ़े हैं या किसी गोशाला में? आपके चेले के बुड्ढे बाप की तुलना में आपका चेला ज्यादा मूर्ख और खूसट है जो 40 साल तक अपनी स्वतंत्र सोच नहीं विकसित कर सका और बाप की उंगली पकड़कर चलता रहा और बाप के पैसे से ही घूस देकर नौकरी पाया और घूस की भरपाई के लिए खुद घूसखोरी करेगा।@DS Mani Tripathi जी। मैंने तो पिताजी की आईएस-पीसियस की तैयारी कि किसान पिता की राय न मानने के लिए 18 की उम्र में (बीयस्सी सेकंड यीयर) उनसे पैसा लेना बंद कर दिया था। कोई विवेकशील या कुतर्की या खास सामाजिक मूल्यों का वाहक बुढ़ापे में नहीं बनता, बल्कि छात्रजीवन में ही। मैं अपने छात्रों से कहता हूं कि छात्रजीवन हर किसी के जीवन का सूसे खूबसूरत और महत्वपूर्ण चरण होता है, इसलिए उतना नहीं कि इस काल में आप अपने कैरियर की तैयारी करते हैं, जितना कि आजीवन आप वैसा ही व्यक्ति(त्व) आजीवन बने रहते हैं जैसा कि इस दौर (18-20) में अपने को बनाते हैं। यहां तक कि छात्रजीवन के मित्र ही आजीवन आपके निजी मित्र बने रहते हैं। इस पोस्ट पर कमेंट करने वाले सारे विवेकशील लोग क्या 60 पारकर खूसट बन जाएंगे? कुछ महीने पहले 3 साल हेरा-फेरी करने वाला विबागाध्यक्ष रह चुका, एक रिटायर्ड प्रोफेसर टकरा गया। शिष्टाचारी अभिवादन के जवाब में वे बोले, "You know Professor Mishra! a retired professor is like a dog". नौकरी के लिए आगे-पीछे रहने वालों ने घास डालना बंद कर दिया होगा। मैंने कहा, "Pof. XYZ.. a dog is always a dog, whether in service or retired". कहने का मतलब यह मित्र, व्यक्तित्व का मूल्यांकन उम्र से नहीं विचार-कार्यों से होना चाहिए। कोई लंपट या विवेकशील बुढ़ापे में नहीं होता, वह जवानी में अर्जित लंपटता या विवेकशीलता बरकरार रखता है। फ्रेडरिक एंगेल्स ने अपनी कालजयी रचना, 'परिवार, निजी संपत्ति तथा राज्य की उत्पत्ति' मृत्यु से 2 साल पहले की। बातें बुरी लगें तो क्षमा कीजिए।
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