Wednesday, October 17, 2018

मैं जीता हूं जीने के आनंद के लिए

मैं जीता हूं जीने के आनंद के लिए
श्रृजन की अपनी अभिलाषाओं के लिए
मैं जीता हूं जिंदा सपनों के लिए
स्वार्थ की आंधी के झपेड़ों से
बदसूरत हो चुकी धरती को
खूबसूरत बनाने के सपने के लिए
एक ऐसी धरती जिसमें दुख-दर्द का निशान न हो
जिसमें कोई रोटी का मोहताज न हो
एक धरती जिसमें कोई रक्तपात न हो
हो जिसमें इंसानी समानुभूति की बरसात
बहे जहां आजादी- समता-भाईचारे का निर्झर प्रपात
एक ऐसी धरती के सपने हो
जिस पर भय का न नामोनिशान
एक ऐसी धरती हो जिस पर इंद्रधनुषी विचारों का उन्मुक्त प्रवाह
मुक्त हो जो युद्धोंमाद-धर्मोंमाद-राष्टोंमाद से
बहती हो दरिया जहां प्यार मुहब्बत की
नफरत शब्द हो जहां अनजान
न कोई भक्त हो न हो कोई भगवान
एक ऐसी धरती जिस पर हो आजादी रचने की
ले न जिसपर कोई गुलाम श्रमशक्ति का नाम
एक ऐसी धरती मुक्त हो जो शोषण-दमन से
कर्मांड-कठमुल्लेपन से
एक ऐसी धरती जिसपर परंपरा के नाम पर
ढोएं न बोझ पूर्वजों की लाशों की
क्योंकि बोझ तो फिर बोझ ही होता है
एक ऐसी धरती भान हो जिस पर प्रतिस्पर्धा का
मानव-सहयोग हो जहां सिद्धांत सबकी मान-प्रतिष्ठा का

मैं जिंदा हूं क्योंकि मैं सपने देखता हूं
मैं जिंदा हूं मानव-मुक्ति के सपनों को साकार करने के लिए
मैं जिंदा हूं परिवर्तन में अडिग जजबात के लिए
मैं एक सार्थक जिंदगी का लुत्फ उठाने के लिए जिंदा हूं
नहीं होता जीने का जीवनेतर मकसद
अपने आप में एक मकसद है जीना एक खूबसूरत जिंदगी
बाकी साथ-साथ चलते हैं सुंखद उपपरिणामों की तरह।
(ईमि:18.10.2018)



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