Friday, October 5, 2018

कैलीगुला के कल्कि अवतार

सुनो कैलीगुला के कल्कि अवतार
था वह भी दैवीयता के घमंड का शिकार
पालता था मन में सर्वशक्तिमान का विकार
दमन के आतंक से कुचलता था विरोधी विचार
चार साल के ही शासन में मचा दिया था जन-मन में हाहाकार
भय से करना चाहता था वह जन-असंतोष का उपचार
कहता था डरते रहें लोग भले ही नफरत करें
मगर भर जाता है जब नफरत का घड़ा
भय को पार कर था जनसैलाब निकल पड़ा
सुनो किसानों के मानमर्दक कैलीगुला के कल्कि अवतार
किसान ने अब उठा लिया है लाठी
अपना पारंपरिक हथियार
तुम्हारे तोप-टैंकों के खिलाफ
ब्रेख्ट ने लिखा था पिछली शताब्दी में
एक गजल जनरल के नाम
जिसके तोप-टैंकों को चलाने के लिए चाहिए एक अदद इंसान
वर्दी पहने जो जवान है उसका बाप भी है एक किसान
जिस दिन उतरेगा नशा वर्दी का
लगाएगा नारा जय-जवान; जय-किसान
याद करो 1857 की किसान क्रांति का नजारा
जवान बन गया था जिसके हरावल दस्ते का हरकारा
था जिसने उस साम्राज्य को ललकारा
देता था जो सूर्यास्त नहीं होने वाले हुकूमत का अहंकारी नारा
मिट्टी में मिल गया होती तभी साम्राज्यवादी अहंकार
आते न उसकी मदद में गर सिंधिया जैसे गद्दार
सुनो कैलीगुला के कल्किअवतार
उठा लिया है किसान ने अपना पारंपरिक हथियार
है उसे अब जय जवान-जय किसान की एका की दरकार
अंत में कैलीगुला के अंत की कहानी भी सुन लो
उसके कल्कि-अवतार
उमड़ा था जब उसके खिलाफ जनसैलाब
उसके सैनिक भी हो गए थे उसके साथ
किया था उन्होने उसके साथ वैसा ही बर्ताव
जैसे किया मुसोलिनी के साथ दो सौ साल बाद।
(कलम की प्रातकालीन आवारगी)
(ईमि: 03.10.2018)

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