बुद्ध के विदेशी दर्शन का जापान, कंबोडिया, चीन, जापान, श्रीलंका..... वालों ने अपने देशी वर्जन तैयार किए। विचार खास परिस्थितियों में पैदा होते हैं और कालजयी विचार सर्वकालिक, सार्वभौमिक बन जाते हैं। अब बुद्ध संयोग से भारत में पैदा हुए। उसी तरह दुनिया की वैज्ञानिक व्याख्या करने और उसे समतामूलक समाज में बदलने का सिद्धांत देने वाले कार्ल मार्क्स संयोग से जर्मनी में पैदा हुए। 24 साल में कलम चलाने के शुरुआती दिनोंं में ही उनके अपने देश के शासकों को देश में में उनकी उपस्थिति देश के लिए खतरा बन गयी। भागकर बगल के देश फ्रांस चले गए, वहां भी रहना उनके देश की सरकार को खतरनाक लगा और फ्रांस की ररकार पर भगाने का दबाव बनाकर वहां से भी भगवा दिया। इसलिए मित्र, बात विदेशी के देशी वर्जन का नहीं है, समाजवाद ही पूंजीवाद का विकल्प है। विदेशी का देशी वर्जन नहीं तैयार किया, यह कम्युनिस्ट आंदोलन की चूक थी। मार्क्सवाद को यहां की खास परिस्थितियों में अनूदित करने का काम काम नहीं किया। देर से दुरुस्ती।
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