Deonath Chand साथी लगता है आपने न अंबेडकर को समझा है न मार्क्सवाद को, दोनों ही भेदभाव से मुक्त समतामूलक समाज के दर्शन हैं। संसदीय या तथाकथित जनतंत्र में हमें इतना ही अधिकार है कि हम चुन सकें कि अगले 5 साल तक शासकवर्ग का कौन प्रतिनिधि अगले 5 साल तक हमारा (जनता का ) शोषण-उत्पीड़न करेगा। मोदी सरकार ने आपसे पूछकर नहीं रफाल डील में अंबानी को राजकोष से 42000 करोड़ की दलाली का इंतजाम किया या मुल्क को देशी-विदेशी धनपशुओं के हवाले कर रहे हैं। हिटलर, ट्रंप या मोदी की निरंकुशता इसी लोक तंत्र की उपज है, कम्युनिस्ट आंदोलन की नहीं। छात्र जीवन के शुरुआती दौर में कम्युनिस्ट 'तानाशाही' पर मेरे भी ऐसे ही विचार थे जैसे आपके हैं। इसमें शायद शाखा के प्रशिक्षण का भी योगदान रहा हो।
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