हम आप सुप्रीम कोर्ट नहीं हैं, क्या सुप्रीम कोर्ट डरा हुआ है जो अपने ही आदेश के उल्लंघन का संज्ञान नहीं ले सकता? सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि मामले की सुनवाई शुरू से अंत तक एक ही जज करेगा। मोदी के प्रधानमंत्री बनते ही शाह भाजपा अध्यक्ष बन गया और कोर्ट में हाजिर होना बंद कर दिया। मामले की सुनवाई करने वाले न्यायाधीश उत्पत ने किसी न किसी बहाने शाह के पेश न होने पर उनके वकील को डांट लगाई और अगली तारीख पर पर हाजिर होने का आदेश दिया लेकिन मुंबई हाई कोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायधीश ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश को धता बताते हुए न्याधीश उत्पत का तबादला कर दिया। सुप्रीम कोर्ट को तभी संज्ञान लेना चाहिए था कि हाई कोर्ट के प्रमुख न्ययाधीश को तलब करना चाहिए था कि वह एक अपराधी के मददगार क्यों बने? उनके बाद न्यायधीश लोया ने भी तड़ीपार को निजी पेशी से छूट नहीं दी और अगली सुनवाई के पहले ही किसी की शादी में शरीक होने नागपुर गए और उनकी हत्या हो गई जिसे महाराष्ट्र के बिके पुलिसियों और सरकारी डॉक्टरों ने स्वाभाविक मौत बता कर मामला रफा-दफा कर दिया। न्यायाधीश लोया का फोन सारे कॉल डिटेल डिलीट कर उनके घर वालों को पुलिस की बजाय आरयसयस अधिकारी ने उनके परिजनों को लौटाया। उसके बाद मामला बिके हुए जज गोसावी को सौंपा गया जिलने 2 दिन में ही सुनवाई करके 75 पेज के फैसले में मामले को राजनैतिक साजिश बताकर तड़ीपार को क्लीन चिट दे दी। उसके बिके हुए का सबूत तो यह है कि रिटायर होने के चंद महीनों में ही मोदी सरकार ने उसे केरल का राज्यपाल बनाकर उपकृत किया। न्याधीश लोया के परिजन इतने डर गए कि बात उठाने की हिम्मत जुटाने में 3 साल लग गया। अब तो जागे सुप्रीम कोर्ट।
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