Thursday, November 23, 2017

शराफत की चुप्पी

शराफत की चुप्पी
ईश मिश्र
पैदा हो ही गए तो जीते रहो ऐसे ही
धरती पर एक अदद की तरह
परिवार का खैरखाह बनकर
घर के बाहर के हाहाकार से बेखबर

सुबह सुबह विस्तर पर
बीबी के हाथों की स्वादिष्ट चाय पिओ
फिलिप मॉरिस इंटरनेसनल के धुएं के कश के साथ
उतारकर कल की बॉस की पार्टी की खुमार
बैठकर ट्वायलेट के पॉट पर खुश हो जाओ
लेकर पॉयनियर अखबार
पढ़कर खबर आईयस की में दानवी उत्पातों की
कि कितने सही हैं मुसलमानों के बारे में अपने विचार
मुसलमान होते ही हैं कसाई
देखो बख्सते भी नहीं अपना ही भाई
उतने ही खुश जितने हुए थे 2002 में
सोचते हुए कि कहीं के मुसलमानों के कुकृत्यों की
कहीं-न-कहीं के मुसलमानों को भरपाई
इसी लिए चुप रहो बोलो मत
बोलने से पड़ जाएगी बोलने की बुरी लत
निलते समय घर से
पहन लो एक विनम्र मुस्कान की नकाब
छिप जाए जिससे तुम्हारी परसंतापी मौन हंसी
रोजमर्रा के निरर्थक शब्द बुबुदाते हुए
रोबो की तरह लोगों से मिलाते हुए हाथ
तुम्हारे सब कुछ है
बॉस की कृपा-पात्रता
सहकर्मियों पर मौन रौब गांठने का अंदाज
बहुत बड़ी न सही ठीक-ठाक नौकरी
और बीयमडब्ल्यू न सही
है तुम्हारे पास भी होंडा सिटी की कार
और समाज थोड़ा-बहुत सम्मान-सत्कार
नहीं है निजी बार नहीं सही
अपनी बॉलकानी में लगा ही सकते हो
एक-दो छुटभइयों का दरबार
लगाते हुए रॉयल स्टैग के पैग दो-चार
रोज नहीं तो महीने में दो बार ही सही
मिल ही जाता है बॉस की पार्टी में
स्कॉच के आचमन आनंद अपार
क्या जरूरत है बोलने की
चुप ही रहो जीते हुए ऐसी ही जैसे भी
चुप ही रहो कुछ न कहो
वैसे भी कहावत है एक अंग्रेजी भाषा में
बोलना है अगर चांदी
सोना है मगर मौन
इसीलिए ऐ शरीफ आदमी
बोलने से आसान है चुप रहना
चुपचाप जीते रहो ऐसे ही जैसे भी
वैसे भी देख चुके हो
बोलने वालों के अंजाम
बोलकर ही करा लिया गौरी लंकेश ने
अपना काम-तमाम
इसीलिए जरूरत क्या है बोलने की
क्या नहीं है तुम्हारे पास
यचआईजी फ्लैट
भरापूरा परिवार
ठीक ठाक नौकरी और होंडा कार
जीते रहो चुप-चाप इसी तरह
अंतिम सांस तक।
(ईमि: 23.11.2017)
[बहुत दिनों बाद कलम की लंबी आवारगी]


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