1972 में इलाहाबाद विवि में दाखिला लिया। 4 साल एक छोटे से शहर जौनपुर में हाई स्कूल-इंटर की पढ़ाई करके विवि जाने वाला अपने गांव का पहला लड़का था। जौनपुर भी गांव का ही सांस्कृतिक विस्तार था। मैं सोचता था कि जात-पांत का मामला गांव के अपढ़ लोगों तक सीमित होगा, प्रोफेसर लोग तो परम ज्ञानी हैं, इन पूर्वाग्रह-दुराग्रहों से मुक्त होंगे! विवि में पहला छात्र आंदोलन 'जगदीश दीक्षित नहीं चुनाव नहीं'. जगदीश दीक्षित विवि से निष्काषित एक बुजुर्ग छात्र नेता थे। 1971-72 के छात्रसंघ की निरंतरता 1972-73 में भी बनी रही। दूसरा 'आेदोलन' बॉटनी विभाग में कायस्थ प्रोफेसरों के चैंबरों में तोड़-फोड़ का था।खबर फैली कि प्रो. भटनागर ने किसी लड़की के साथ बद्तमीजी की थी। इसका पता कभी नहीं चल पाया कि किस लड़की के साथ बजतमीजी की थी। मेरी समझ में नहीं आया कि किसी एक प्रोफेसर ने बद तमीजी की थी तो बाकियों के चैंबरो में तोड़-फोड़ क्यों? पता चला कि प्रोफेसरों की 'ब्राह्मण लॉबी' के पोषित छात्रों ने यह काम 'कायस्थ लॉबी' को उनकी 'औकात' दिखाने के लिए किया। तभी मैं जाना कि भटनागर कायस्थ होते हैं। मिश्र, पांडेय, जोशी, पंत आदि के चैंबर बीच-बीच में छोड़कर श्रीवस्तव, वर्मा, सक्सेना आदि के चैंबरों को निशाना बनाया गया था। यह मेरे जीवन का, तब तक का सबसे बड़ा कल्चरल शॉक था और ज्ञान और शिक्षा के अंर्विरोध का पहला साक्षात्कार।
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