Tuesday, November 14, 2017

जनहस्तक्षेप ( रावण की रिहाई का ज्ञापन)

Janhastakshep: a campaign against fascist designs
Contact: Ish Mishra: 9811146 846, mishraish@gmail.com; Dr Vikas Bajpai: 9810275314 

उत्तर प्रदेश सरकार को ज्ञापन

राष्ट्रीय सुरक्षा कानून को रद्द करोः दलित नेता चंद्रशेखर आजाद रावण का उत्पीड़न बंद करो

सेवा में,
मुख्यमंत्री, उत्तर प्रदेश (द्वारा- नई दिल्ली स्थित रेडिडेन्ट कमीश्नर)

महोदय,

संविधान ने विचार, अभिव्यक्ति एवं सभा की स्वतंत्रता को नागरिकों का मौलिक अधिकार घोषित किया है। लेकिन अवैध गतिविधि निरोधक अधिनियम और राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम जैसे असाधारण कानूनों का संवैधानिक प्रावधान भी रखा गया है। संवैधानिक लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं में अंतर्निहित अंतर्विरोध का उपयोग विचार एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दमन करने के लिए किया जाता है। हिंदुत्ववादी फासीवाद के केंद्र की सत्ता में आने के बाद से धार्मिक अल्पसंख्यकों, दलितों और क्रांतिकारी बुद्धिजीवियों को खास निशाना बनाया जा रहा है। 90 फीसदी विकलांग प्रो. साइबाबा को नागपुर जेल के एकांत प्रकोष्ठ में रखा गया है। यह सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों का उल्लंघन है, लेकिन कोर्ट ने इसका स्वतः (Suo moto) संज्ञान नहीं लिया है। इसी तरह भीम आर्मी के प्रमुख चंद्रशेखर आजाद रावण को दी जा रही क्रूर यातना और उनके उत्पीड़न का संज्ञान भी नहीं लिया गया है। उन्हें इलाहाबाद हाई कोर्ट ने जमानत दे दी थी, लेकिन उसके तुरंत बाद उन पर दमनकारी राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम लगा दिया गया। अदालत में पेश की गईं उनकी तस्वीरें उप्र की योगी सरकार के इशारे पर पुलिस द्वारा उनसे की गई बर्बरता की गवाह हैं। यह सर्वविदित है कि इस साल मई में सहारनपुर जिले के गांव शब्बीरपुर में दलितों और दबंग ठाकुर जाति के लोगों के बीच हुए दंगों के दौरान दलितों के अनेक घरों में आग लगा दी गई थी। इससे दलित डर के मारे गांव छोड़कर भाग गए। हालिया रिपोर्टों के मताबिक उनका गांव अभी भी वीरान है।

सर्वविदित है कि इस टकराव का कारण वर्ण व्यवस्था के सामने पेश आ रहीं नई चुनौतियों के प्रति दबंग सवर्ण जातियों की असहिष्णुता है। पिछले तीन दशकों में दलितों के अपना अधिकार जताने और उनमें आई विद्वता के कारण ये चुनौतियां पैदा हुई हैं। सहारनपुर और नई दिल्ली में भीम आर्मी ने अन्य लोकतांत्रिक एवं प्रगतिशील शक्तियों के सहयोग से विशाल रैलियों का आयोजन किया। उसके बाद पेशे से वकील चंद्रशेखर की गिरफ्तारी हुई। बीते दो नवंबर को इलाहाबाद हाई कोर्ट इस नतीजे पर पहुंचा कि चंद्रशेखर के खिलाफ लगाए गए अभियोग राजनीति से प्रेरित हैं। तब कोर्ट ने उन्हें जमानत दे दी। उसके अगले दिन सहारनपुर के डीएम ने उन पर रासुका लगा दिया। आजाद की गिरफ्तारी और उन्हें दी गई यातना कोई अलग-थलग घटना नहीं है। बल्कि यह उप्र और केंद्र की एनडीए सरकारों की हिंदू राष्ट्र की स्थापना के क्रम में दलित-विरोधी एजेंडे का हिस्सा हैँ।

हमारी मांगें
जन-हस्तक्षेप मांग करता है कि दमनकारी रासुका को तुरंत रद्द किया जाए, क्योंकि इसका इस्तेमाल मानवाधिकारों का गंभीर हनन है।
रावण को अविलंब रिहा किया जाए। उन पर लगे रासुका को हटाया जाए।

हम यह भी मांग करते हैं कि असहमति, अभिव्यक्ति और प्रतिरोध की स्वतंत्रता को कुचलने के तमाम अलोकतांत्रिक तरीकों का इस्तेमाल रोका जाए। हम मांग करते हैं कि युवा दलित नेता पर लगाए गए तमाम फर्जी आरोप वापस लिए जाएं।

ईश मिश्र (संयोजक)
विकास वाजपेयी (सह-संयोजक)drvikasbajpai@gmail.com

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