इस पर बाद में विस्तार से बात करेंगे, अभी मार्शल टीटो की एक बात बताता हूं। एक साथी ने किसी जगह के बारे में टीटो से कहा कि वह तो समतल इलाका है वहां गुरिल्ला वार कैसे हो सकता है? मार्शल टीटो ने कहा कि वहां तो सबसे सफल गुरिल्ला वार हो सकता है। हाकिम परेशान रहते थे कि ये गुरिल्ले कब और किधर से आते थे? कहीं से आते हों तब न। दिन में जिम्मेदार नागरिक और रात में गुरिल्ला। इस तरह के नैतिक जनसमर्थन के बिना सशस्त्र क्रांति मुश्किल होती है। मेरी राय में आज का वक्त फासीवाद का हर मोर्चे पर विरोध करते हुए, जनांदोलनों से जनबल बनाना होगा। एक साथी ने ऊपर सही कहा है कि बुद्धिजीवी जन से कटे हुए हैं जन के बीच जाकर ही जनवाद सीख सिखा सकता है। इसमें व्यावहारिक कठिनाइयां हो सकती हैं, लेकिन वह अपनी बातें इनके पास पहुंचाने की जुगाड़ कर अपनी भूमिका को ज्यादा सार्थक बना सकता है।
इसीलिए साथी अभी सशस्त्र क्रांति का वक्त नहीं है, क्योंकि जब तक जनता आपको अपना न मानकर दुश्मन मानेगी, सशस्त्र क्रांति बहुत सीमित सफलता पाएगी और उनके सरकारी दमन को नैतिक जनसमर्थन मिलता रहेगा। अभी वक्त क्रांति की तैयारी का है और अभी मुख्य शत्रु फासीवादी कॉरपोरेट है। अभी सामाजिक चेतना के जनवादीकरण के प्रयासों को बहुत तेज करना पड़ेगा। 1980 के दशक में तबके सेंट्रल विहार में लिबरेसन के ओवर ग्राउंड-अंडरग्राउंड में बहुत अच्छा तालमेल था। लेकिन वे भी सीपीयम के रास्ते चल पड़े
इसीलिए साथी अभी सशस्त्र क्रांति का वक्त नहीं है, क्योंकि जब तक जनता आपको अपना न मानकर दुश्मन मानेगी, सशस्त्र क्रांति बहुत सीमित सफलता पाएगी और उनके सरकारी दमन को नैतिक जनसमर्थन मिलता रहेगा। अभी वक्त क्रांति की तैयारी का है और अभी मुख्य शत्रु फासीवादी कॉरपोरेट है। अभी सामाजिक चेतना के जनवादीकरण के प्रयासों को बहुत तेज करना पड़ेगा। 1980 के दशक में तबके सेंट्रल विहार में लिबरेसन के ओवर ग्राउंड-अंडरग्राउंड में बहुत अच्छा तालमेल था। लेकिन वे भी सीपीयम के रास्ते चल पड़े
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