Monday, June 15, 2015

इल्ज़ाम का तबादला इंसानी फितरत है

वे इल्ज़ाम किसीअौर पर डाल देते है
बुझाकर दीप हवा का नाम लगा देते हैं
बताते हैं इसे साश्वत इंसानी फितरत
रखते हैं  ईमानदार कहलाने की हसरत
मगर मानेगा न गलती तो सीखेगा कैसे
करता रहेगा गलतियां पहले ही जैसे
ले ले इल्जाम अगर इंसान खुद पर
हो दिल से शर्मिदा अपने किये पर
संजीदगी से खुद से संवाद करेगा
खुलेदिल से बेबाक सच बात कहेगा
शर्म में नहीं है कोई शर्म की बात
शर्मिंदगी है एक क्रांतिकारी एहसास
बेचैनी नहीं है  दोष व्यक्तित्व का
सनद है ये सर्जक कृतित्व का
शर्मिंदा होती है जब बेचैन आत्मा
होता है पिछली गल्तियों का खात्मा
ले सीख गलतियों से बनाती नई डगर
बढ़ती है उस पर बिना किसी अगर-मगर
मिलते राह में नये नये हमसफर
आसान हो जाती है मुश्किल सी डगर
जब भी अंधेरे के लिये बुझाओ चिराग
मासूम हवाओं पर न लगाओ दाग
(ईमिः 15.06.2015)

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