शामे ग़म तेरी कसम ये शाम तुम्हारे नाम
करता हूं जब भी ग़म-ए-जहां का हिसाब
खुल जाती है तुम्हारी यादों की किताब
याद आती है कही-अनकही बातें बेहिसाब
सोचता हूं जब भी रहबरी यादों की नाव में
कोलाहल मच जाता है सपनों के गांव में
(इमिः12.06.201
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