Thursday, June 11, 2015

शामे ग़म तेरी कसम

शामे ग़म तेरी कसम ये शाम तुम्हारे नाम 
करता हूं जब भी ग़म-ए-जहां का हिसाब
खुल जाती है तुम्हारी यादों की किताब
याद आती है कही-अनकही बातें बेहिसाब
सोचता हूं जब भी रहबरी यादों की नाव में
कोलाहल मच जाता है सपनों के गांव में 
(इमिः12.06.201

No comments:

Post a Comment