681
नंदिता
(डूटा अध्यक्ष) के साथ खड़े
हम
लड़ेंगे साथी
गाते
हुये पाश का गीत
हम बेखौफ
मुखालिफ हैं निजाम-ए-खौफ़ के
डरते तो
तुम हो
हो
ख़ौफ़ज़दा हमारी नाडरी से
छुप कर
करते हो कुटिल कातिलाना वार
आजमाते
हो सत्ता के सारे मारक हथियार
लेकिन
कुर्सी की मदांधता में
जानकर भी
नहीं मानते हो यह साश्वत सत्य
कि हम तो
मर ही नहीं सकते
हम तो
विचार हैं
(ईमि: 230.05.2015)
682
जो कहता
है चलने को अपने पीछे
लात
मारता हूं उसके बटुक प्रदेश पर
जो कहता
है मेरे पीछे चलने की बात
मारता
हूं मुक्का उसकी नाक पर
आओ चलते
हैं साथ साथ
(ईमिः 30.05.2015)
683
विजयी
सैनिक
40 साल
पहले मिला था वह विजयी सैनिक
जो अचानक
फिर मिल गया
लंबा समय
होता है 40 साल
लेकिन
मुझे याद है ऐसे जैसे कल की बात हो
ओत-प्रोत
हो गया था मुझ किशोर का मन
अपने ही
जिले के उस योद्धा से
जिसके
बारे में रेडियो में सुना था
जिसने
मार दिये थे सैकड़ों दुश्मन
अपनी
सूझ-बूझ और युद्ध-कौशल से
आज भी
सीने से चिपका था वही तमगा
लेकिन अब
याद नहीं उसे
कि यह
तमगा किस चक्र का है
परम, महा या महज वीर का
वह जीवन
से दुखी तो नहीं था
थोड़ा
परेशान था
बहू की
विधवा पेंशन की दौड़-भाग में
उसके
सैनिक बेटे की पत्नी
जो शहीद
हो गया बिना किसी जंग के
लद्दाख
के बर्फीले तूफानों से लड़ते हुये
उस बेटे
की पत्नी
जो सैनिक
बना चलने के लिये
पिता के
पदचिन्हों पर
यही तो
चाहता है एक औसत बाप
अब उसे
लगता है
ऐसा नहीं
चाहना चाहिये
बच्चों
को खुद रास्ता बनाने देना चाहिये
उस बेटे
की पत्नी
जिसके
बच्चों को गुमान है बाप की शहादत का
मगर पेट
की भूख तोड़ देती है वीरता का गुमान
मनाते
हैं देवी-देवता मानते हैं मनौती
मांगते
हैं मां की विधवा पेंशन का वरदान
फिर भी
पेंशन से विजयी सैनिक के
चल जाता
है घर का काम
समय
काटना भी कोई समस्या नहीं
इस विजयी
सैनिक की
याद करता
रहता है उन दुश्मनों की शकलें
जिन्हे
बिरहमी से हलाक किया था
इस विजयी
सैनिक ने
जिनसे
उसकी कोई दुश्मनी नहीं थी
लेकिन
साहब ने बताया उन्हें देश का दुश्मन
और होता
नहीं दुश्मन का कोई मानवाधिकार
सैनिक के पास होता नहीं
सैनिक के पास होता नहीं
हुक़्मनातालीमी
का अधिकार
करना
दुश्मन की परिभाषा और पहचान
नहीं है
काम सैनिक का
फल है
सर्वज्ञ आलाकमान के
शत्रुविज्ञान
के प्रखर ज्ञान का
शुरू
किया बात विजय की इस बार
जब इस
विजयी सैनिक ने
अदृश्य
हो चुकी थी गर्व की रेखायें
या दब
गयीं थी
गहन
अपराध-बोध की झुर्रियों तले
उसकी
वीरता के शिकार दुश्मन भी
इंसान लग
रहे थे
बोला
आचार्यत्व के भाव में
अब क्या
फायदा कहने का
कि नहीं
मारना चाहिये उन दुश्मनों को
जिनसे
कोई दुश्मनी न हो
हां वह
उस सैनिक बेटे के बच्चों को
जरूर
बतायोगा बात
उस बेटे
के बच्चों को
जो बिना
जंग के शहीद हो गया
और जिसके
विधवा की पेंशन अटकी हुई है
यह भी कि
सैनिक कभी विजयी नहीं होता
जब तक वह
हाक़िम के बताये दुश्मन को
अपना
दुश्मन मानता रहता है
वह तभी
विजयी होगा
जब
दुश्मन की पहचान खुद करेगा
(ईमिः22.05.2015)
684
The triumphant soldier
Its not so long ago when I met this
triumphant soldier
and now meeting him again after 40
years
but memories are still fresh
yet 40 years is not so a small span
meeting a war hero from the own place
whose name was heard on the All India
radio
for his heroic acts
The victorious soldier
who by his strategy and war skill
had ruthlessly slaughtered hundreds of
enemies
whom he had no enmity with
Even today he is holding the same medal
on his chest
but does not exactly remember now
whether it is PARAM, MAHA or just VEER
Chakra
(medal of Supreme hero, great hero or
just the hero)
He was not unhappy with life
just little worried
worried about the running around
for the widow pension of his
daughter-in-law
the wife of his martyred son
who became a martyr without fighting a
war
but fighting the snow storms at the
NEFA's Himalayan heights
the widow of that son
who joined the army on father's foot
step
that is what most parents want
he feels now that children must not be
shown just the traveled paths
but must be encourage to invent the new
one
The widow of his that son
whose children are proud of his
martyrdom
but the cries of the stomach overshadow
the pride
they seek just one blessing from all
the Gods
-- the clearance of their mother's
widow pension
But the triumphant soldier manages the
family with his pension
Passing the time too is not a problem
for him
he keeps remembering the faces of the
victims of his war heroism
the enemies whom he killed with
impunity
he remembers the faces of unknown enemies
whom he had nothing against
But the boss had told that they are the
nation's enemies
And the enemy has no human rights
In the same way as the soldier has no
right of non-compliance
To define and identify the enemy is not
the prerogative of the soldier
But the task of all knowing all mighty
high command
the product of its intense knowledge of
enemy-ethics
But this time when he began to talk
about the triumph
The lines of pride had become invisible
or were covered and concealed under the
wrinkles of the guilt conscience
Even the slain enemies were looking
humans
Spoke with an air of wisdom
That though it was no use saying now
that he should not have killed the
enemies
The enemies who he had no enmity with
But he would certainly tell this to the
children of his martyred son
And also tell them that soldier never
wins
As long as the enemy is identified by
the rulers
He shall triumph only when he
identifies his own enemy.
[Ish Mishra/22.05.2015]
685
इतिहास
से वंचित कर दो
वह
इतिहास पढ़ता है
पढ़ने तक
गनीमत थी
वह सीखता
भी है इतिहास से
जान सकता
है
महान
सम्राटों के
खून से
सने गौरवशाली हाथों की हक़ीकत
उनको
इतिहास से वंचित कर दो
उन्हें
पढ़ाओ वेदों की महानता
कर्मकांडों
की महिमा
तथा
विधर्मियों के हाथों शहीद
पूर्वजों
की गरिमा
पढ़ेगा
का यदि वह राजनैतिक इतिहास
कर सकता
है अतीत को
वर्तमान
से जोड़ने का ही नहीं
भविष्य
को मोड़ने का भी प्रयास
उसे
इतिहास से वंचित कर दो
खतरनाक
है बच्चों को पढ़ाना इतिहास
वह जान
जायेगा इतिहास का सार
कि
इतिहास की गाड़ी में बैक गीयर नहीं होता
मानेगा
ही ऋग्वेद की ऐतिहासिक महत्ता
श्रद्धा
से नमन तो करेगा
अपने
अतिप्राचीन पूर्वजों को
उनके
समतावादी सौंदयबोध
तथा
सोमरस के सुरूर में
भौतिकवादी
काव्यबोध के लिये
लेकिन
समझ सकता है
वैदिक
गणित-विज्ञान के अभियान की असलियत
भांप
सकता है भविष्य से साज़िश की नीयत
उसे
इतिहास से वंचित कर दो
कितना
प्रतिगामी बनाना है बच्चों को इतिहास पढ़ाना
उन्हें
पीछे नहीं आगे ले जाना है
विकास का
इतिहास नहीं भूगोल पढ़ाना है
उसे
चारवाकी सवालबाज नहीं
क़ॉरपोरेटी
विकासबाज बनाना है
पढ़ेगा
ग़र इतिहास
जान
जायेगा सत्ता की साज़िशों की फेहरिस्त
और यह भी
कि सब कुछ जायज है जंग-ए-तख्त में
मलुम हो
जायेगी उसे अजातशत्रुओं की बातें
कि सत्ता
के लिये बाप को भी बख़्शा नहीं जाता
भाइयों
की लाशों पर
हुकूमत
के किले बनाने वाले अशोकों-औरंगजेबों को
और
मुमकिन है
वे
इतिहास की वर्तमान व्याख्या शुरू कर दें
यह बहुत
खतरनाक है
उसे
इतिहास से वंचित कर दो
कितना
खतरनाक है बच्चों को इतिहास पढ़ाना
वे जान
जायेंगे
कि किस
तरह करके वंचित बहुजन को
शस्त्र
तथा शास्त्र के अधिकार से
ब्राह्मणवाद
ने रचा जहालत का जाल
किया पेश
सामाजिक जड़ता की मिशाल
फेल कर
सकते हैं वे
अतीत के
स्वर्णयुग की स्वर्णिम चाल
यह और भी
खतरनाक है
उसे
इतिहास से वंचित कर दो
अगर
इतिहास पढ़ेंगे बच्चे
तो वे यह
भी पढ़ेगे
कि सोने
की चिढ़िया कहा जाता था भारत
इतिहास
की अठारहवी शदी तक
और यह भी
कि मुगलकाल में ही बना वह
अंतरराष्ट्रीय
व्यापार का प्रमुख किरदार
कैसे चलेगा
हजार साल की गुलामी प्रचार
यह उससे
भी खतरनाक है
उसे
इतिहास से वंचित कर दो
इतिहास
पढ़ना इस लिहाज से भी खतरनाक है
वह यह भी
जान जायेगा
कि एक
ईस्टइंडिया कंपना आई थी हिंदुस्तान
मांगने
व्यापार की इज़ाजत मुगल सम्राट से
मिलते ही
इज़जात शुरू किया कंपनी ने तिजारती लूट
काबिज हो
गयी मुल्क पर मिलते ही छूट
200 साल तक
बना रहा मुल्क गुलाम
पढ़ेगा
अगर वह इतिहास
लगायेगा
सवालिया निशान
मेक इन
इंडिया के लिये
सैकड़ों
कंपनियों को दिये बुलावे पर
यह सबसे
खतरनाक होगा
उसे
इतिहास से वंचित कर दो.
(ईमि/24.05.2015)
686
कब से तो हम गा रहे हैं
वह
सुबह कभी तो आयेगी
खुशियों
की बयारें लायेगी
धरती
आज़ादी के नग़्में गायेगी
पर रात
भयानक होती जायेगी
वह
देरी जितना लगायेगी
है उस
सुबह का बेसब्र इंतजार
अपना
इतिहास लिखेगा जब खुद ख़ाकसार
होंगे
नहीं शेरों के जब तक खुद के इतिहासकार
इतिहास
करता रहेगा शिकारी की महिमा का प्रचार
और
मांगता रहेगा हलवाहा वेद पढ़ने का अधिकार
आयेगी
ही वह सुबह जब रौशन होगा सारा संसार
करेगा
हलवाहा तब वैकल्पिक वेद रचने का विचार
इतिहास
करता है सबसे एक सलूक एकसमान
खात्मा
निश्चित है सबका है जो भी विद्यमान
नहीं
रहेगा सदा कायम ये ज़ुल्म का निज़ाम
होगा
ही इसका भी जल्द ही काम तमाम
(ईमिः24.05.2015)
687
जब भी
चाहो आ सकते हो ज़िंदगी में
जब चाहो
जा सकते हो ज़िंदगी से
अपन को
तो बस दरकार है
आने की
एक हल्की दस्तक की
और जाने
की अलविदा की एक मुसकराहट
हल्की
सी.
(ईमिः24.05.2015)
688
कुछ लोग बेदस्तक आ जाते हैं
और चले जाते हैं बेआहट
(ईमिः25.05.2015)
689
जो
मोह-माया से परे होते हैं
संवेदनाओं
से भरे होते हैं
मिलता जब
दिल को संत्रास
होता
उनको भी अवसाद
(ईमिः25.05.2015)
690
क्लारा
ज़ेटकिन की कवता(शिखा अपराजिता की वाल से)
"Those who reap the crops and bake
the bread are hungry.
Those who weave and sew cannot clothe
their bodies.
Those who create the nourishing foundation
of all culture waste away, deprived of knowledge and beauty."
का
अनुवाद
भूखे रह
जाते हैं वे लोग
जो
खून-पसीना एक करके फसल उगाते हैं
वे भी जो
भट्ठी के ताप में रोटी पकाते हैं
नहीं
मयस्सर होता उनको तन ढकने को कपड़ा
जो कपड़ा
बुनते हैं
उनको भी
जो सिलकर उसे वस्त्र बनाते हैं
ज्ञान
तथा सौंदर्य से वंचित हो जाते हैं वे सब
रखते हैं
जो बुनियाद संस्कृतियों की
वे भी जो
खड़ी करते हैं उनपर अट्टालिकायें
(अनुवाद – ईश मिश्र)
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