ढूढ़ रहा था तुम्हारी यही तस्वीर
उतारा था जिसे कविता में
तुमसे मिलने से पहले ही
और थमा दिया था लाल फरारा
कल्पना करो उस कवि की खुशी के आलम का
साकार हो जिसकी कल्पना
लेकिन तुम तो पहले ही
उठा चुकी थी इंकिलाबी परचम
कविता की कल्पना के पहले
कल्पना यथार्थ का ही अमूर्तिकरण है
(ईमिः 18.06.2015)
सुन्दर
ReplyDeleteतुम्हारी याद !
Thanks
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