Pushpa Tiwari मित्र मुझे हिंदू या किसी धर्म से कोई दिक्कत नहीं है न इसे मानने वालों से, धर्मों के कठमुल्लेपन से है. वैसे तो सारे धर्म विवेक पर आस्था को वरीयता देने के चलते प्रतिगामी होते हैं. मेरा तो बचपन गीता के शलोक तथा रामचरितमानस के दोहे-चौपाइयां जपते बीता. अाज भी बहुत से श्लोक याद हैं. 20 साल की उम्र में दोनों ग्रंथो को सजग दिमाग से पढ़ा. ऋगवेद तथा कुरान भी. बाकी की बात अभी नहीं करता. जो लोग गीता को सद्गुण की खान मानते हैं, उन्होने या तो गीता पढ़ा नहीं या दिमाग बंद कर भक्तिभाव से पढ़ा है. गीता अंधभक्ति को बढ़ावा देने वाला मर्दवादी-वर्णाश्रमी मूल्यों का पोषक ग्रंथ है
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